Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ज्ञातव्यापार विचार पूर्वपक्ष
प्रमाणलक्षण के प्रणयन करने में प्रभाकर का ऐसा कहना है कि वस्तु को जानने के लिये जो ज्ञाता रूप आत्मा का व्यापार या प्रवृत्ति होती है वह प्रमाण है। कहा भी है
"तेन जन्मैव विषये बुद्धेापार इष्यते । तदेव च प्रमारूपं तद्वती करणं च धी:” ॥ ६१ ॥
--मीमांसकश्लोकवार्तिक विषयों में ज्ञान की उत्पत्ति होना ज्ञाता का व्यापार है, वही प्रमा है, और वही करण है । यद्यपि यह ज्ञातृव्यापार प्रत्यक्ष नहीं है तो भी पदार्थों का प्रकाशित होना रूप कार्य को देखकर उसकी सिद्धि कर सकते हैंव्यापारो न यदा तेषां तदा नोत्पद्यते फलम् ।। ६१ ॥
- मी० श्लो० वा. जब आत्मा में वह व्यापार नहीं रहता तब जानना रूप फल भी उत्पन्न नहीं हो पाता, कारण के अभाव में कार्य होता नहीं देखा जाता है, ऐसा नहीं है कि वस्तु निकट में मौजूद है, हमारी इन्द्रियां भी ठीक हैं, किन्तु उस वस्तु का बोध नहीं हो । अत: निश्चित होता है कि आत्मा में-ज्ञाता में व्यापार-क्रिया नहीं है, इसीलिये पदार्थ का ग्रहण नहीं हुआ, इस प्रकार हमारा कथन सिद्ध होता है कि पदार्थ को जानने का जो ज्ञाता का व्यापार है वह प्रमाण है और पदार्थ का बोध होना-उसे जानना यह प्रमाण का फल है ।
* पूर्व पक्ष समाप्त *
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