Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ज्ञातृव्यापारविचारः
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प्रत्यक्षानिश्चीयते । न च प्रकृतं साध्यमविकलकारणं कस्यचिद्भावे निवर्तमानमुपलभ्यते; तस्यादृश्यत्वात् । द्वितीयस्तु परस्परपरिहारस्थितिलक्षणः । सोप्युपलभ्यस्वभावभावनिष्ठत्वात्प्रकृतविषये न सम्भवति ।
किञ्चानुपलम्भोऽभावप्रमाणं प्रमाणपञ्चकविनिवृत्तिरूपम् । तच्च ज्ञातमेवाभावसाधकम् ; कृतयत्नस्यैव प्रमाणपञ्चकविनिवृत्त रभावसाधकत्वोपगमात् । तदुक्तम्
गत्वा गत्वा तु तान्देशान् यद्यर्थो नोपलभ्यते । तदान्यकारणाभावादसन्नित्यवगम्यते ।
-मीमांसाश्लो० वा० अर्था० श्लो० ३८
प्रतीति में नहीं आता है-प्रर्थात् ज्ञाता के व्यापार के विरोधी कारण होने पर वह निवर्तमान हो ऐसा देखने में नहीं पाता है क्योंकि वह अदृश्य है दूसरा विरोध परस्पर परिहार स्थिति रूप होता है, यह विरोध उपलब्ध होने योग्य पदार्थ में ही रहता है, किन्तु ज्ञाता का व्यापार तो अनुपलम्भ स्वभाववाला- उपलब्ध होने के स्वभाववाला नहीं है, अतः इस विरोध के होने की वहां सम्भावना ही नहीं है ?
दूसरी बात यह है कि वस्तु का अनुपलम्भ स्वभाव अभाव प्रमाण के द्वारा जाना जाता है, तथा प्रभाव प्रमाण सद्भाव रूप के आवेदक पांचों प्रमाणों की विनिवृत्तिरूप होता है-अर्थात् पांचों प्रमाणों के निवृत्त होने पर प्रवृत्त होता है और वह अभाव प्रमाण जाने हुए देखे हुए पदार्थ का ही अभाव सिद्ध करता है, जहां पांचों प्रमाण प्रयत्न करके थक गये हैं ऐसे विषयों का अभाव सिद्ध करने के लिये अभाव प्रमाण आ जाता है । कहा भी है
गत्वा गत्वा तु तान् देशान् यद्यर्थो नोपलभ्यते । तदान्यकारणाभावादसन्नित्यवगम्यते ॥
-मीमांसाश्लोकवा० अर्था० श्लो० ३८ अर्थ-उन उन स्थानों पर जाकर भी यदि पदार्थ उपलब्ध नहीं होता हैऔर अन्य कोई कारण है नहीं कि जिससे पदार्थ प्राप्त न हो तो वहां वह पदार्थ नहीं है इस तरह से उस पदार्थ का असत्व निश्चित किया जाता है, ऐसा मीमांसा श्लोक वात्तिक में कहा है, पांचों प्रमाणों का अभाव कोई अन्य अभाव प्रमाण से जाना जायगा कि प्रमेय के प्रभाव द्वारा जाना जायगा ? यदि अन्य अभाव प्रमाण से जाना
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