Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ज्ञातृव्यापारविचारः
प्रकृतसाध्याभावः प्रत्यक्षाधिगम्यः, तस्य ज्ञातृव्यापाराविषयत्वेन तद्भाववत्तदभावेऽपि प्रवृत्तिविरोधात् । समर्थितं चास्य तदविषयत्वं प्रागिति । नाप्यनुमानाधिगम्यः, अत एव ।
अथानुपलम्भनिश्चयः अत्रापि किं दृश्यानुपलम्भोऽभिप्रेतः, अदृश्यानुपलम्भो वा ? यद्यदृश्यानुपलम्भः; नासौ गमकोऽतिप्रसङ्गात् । दृश्यानुपलम्भोऽपि चतुर्दा भिद्यते स्वभाव-कारण-व्यापकानुपलम्भविरुद्धोपलम्भभेदात् । तत्र न तावदाद्यो युक्तः; स्वभावानुपलम्भस्यैवं विधे विषये व्यापारा
ज्ञाता का व्यापार साध्य है और अर्थतथात्व का प्रकाशन हेतु है । इन दोनों का अविनाभाव जानने के लिये दूसरा अनुमान चाहिये, तथा उस दूसरे अनुमान में जो साध्य साधन का अन्वयरूप अविनाभाव होगा उसे वह पहिला अनुमान जानेगा, इस प्रकार एक दूसरे के आश्रय होने से एक की भी सिद्धि नहीं होती है। ऐसे ही सर्वत्र अनवस्था और अन्योन्याश्रय दोष का मतलब समझना चाहिये ।
ज्ञाता का व्यापार और अर्थतथात्व प्रकाशन इनका अविनाभाव संबंध व्यतिरेक निश्चय के द्वारा भी नहीं होता है, व्यतिरेक उसे कहते हैं कि जहां साध्य के अभाव में हेतु का प्रभाव दिखाया जाय, किन्तु यहां ज्ञाता का व्यापार रूप जो साध्य है वह प्रत्यक्षगम्य है नहीं, क्योंकि ज्ञाता का व्यापार प्रत्यक्ष का विषय नहीं है, अतः ज्ञाता का व्यापार होने पर तथा न होने पर भी प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति का विरोध ही है, प्रत्यक्ष का विषय ज्ञाता का व्यापार नहीं है इस बात को पहिले ही बता दिया गया है । अनुमान से व्यतिरेक का निश्चय नहीं होता क्योंकि उसको भी ( ज्ञाता का व्यापार होवे अथवा न होवे ) प्रवृत्ति नहीं होती।
प्रभाकर-ज्ञाता के व्यापार का अभाव अनुपलम्भ हेतु के द्वारा किया जाता है, अर्थात्-ऐसी आत्मा में ज्ञाता का व्यापार नहीं है क्योंकि उसके कार्य की उपलब्धि नहीं है, जैसे कि गधे के सींग ।
जैन-इस प्रकार मानने पर भी हम पूछते हैं कि आपने अनुपलम्भ कौन सा माना है-दृश्यानुपलम्भ कि अदृश्यानुपलम्भ, अदृश्यानुपलम्भ साध्य का गमक नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर अति प्रसंग दोष आता है, अर्थात् अदृश्य उसे कहते हैं जो देखने योग्य नहीं है, ऐसी अदृश्य वस्तु का अनुपलम्भ कैसे जान सकते हैं। क्योंकि अदृश्य पदार्थ तो मौजूद होते हैं फिर भी वे उपलब्ध नहीं होते और मौजूद न हों तो भी वे उपलब्ध नहीं होते, जैसे कि पिशाच परमाणु आदि हों चाहे मत
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