Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
इन्द्रियवृत्ति प्रमाण पूर्वपक्ष सांख्य और योगदर्शन में इन्द्रियवृत्ति को प्रमाण माना है
"इन्द्रियप्रणालिकया बाह्य वस्तूपरागात् सामान्यविशेषात्मनोऽर्थस्य विशेषावधारणप्रधानवृत्तिः प्रत्यक्षम्"
-योगदर्शन व्यास भा० पृ० २७ अत्रेयंप्रक्रिया-इन्द्रियप्रणालिकया अर्थसन्निकर्षण लिङ्गज्ञानादिना वा आदौ बुद्धेः अर्थाकारावृत्तिः जायते ।
-सांख्य प्र भा. पृ. ४७ इन्द्रियरूपी प्रणाली के द्वारा बाह्य वस्तु के संबंध से सामान्य विशेषात्मक पदार्थ का विशेष अवधारण स्वरूप जो वृत्ति होती है, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं । उस वृत्ति का तरीका यह है कि पहिले इन्द्रिय का पदार्थ से सन्निकर्ष होता है अथवा लिङ्गज्ञानादि ( अर्थात् अनुमान में धूम आदि हेतु का ज्ञान होना ) के द्वारा बुद्धि की अर्थाकार वृत्ति हो जाती है अर्थात् बुद्धीन्द्रियां जो चक्षु आदि हैं उनका अर्थाकार होना या अर्थों को जानने के लिये उनकी प्रवृत्ति होना प्रमाण कहलाता है, इस प्रकार चित्त-मन का इन्द्रिय से और इन्द्रिय का पदार्थ से संबंध होने में जो प्रवृत्ति है वह प्रमाण है । यही बात अग्रिम श्लोक में कही है
विषयश्चित्तसंयोगाद् बुद्धीन्द्रियप्रणालिकात् । प्रत्यक्षं सांप्रतं ज्ञानं विशेषस्यावधारकम् ।। २३ ।।
-योग कारिका चित्त संयोग से बुद्धि इन्द्रिय के द्वारा विषयों के साथ संबंध होने पर विशेष का अवधारण करने वाला वर्तमान प्रत्यक्ष ज्ञान पैदा होता है, यहां जो इन्द्रियों की वत्ति हुई है वह तो प्रमाण है और विषयों का जो अवधारण निश्चय होना है वह फल है, हम सांख्य योग ३ प्रमाण मानते हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द (आगम) इनमें से उपर्युक्त प्रमाण तो प्रत्यक्ष है । अनुमान में भी लिङ्ग (हेतु) ज्ञान आदि के द्वारा बुद्धीन्द्रिय का अर्थाकार होना और फिर साध्य का ज्ञान होना है अत: वहां भी प्रमाण का लक्षण घटित होता है शब्द प्रमाण में भी यही बात है । इसलिये इन्द्रिय वृत्ति प्रमाण का लक्षण स्वीकार किया है ।
* पूर्वपक्ष समाप्त *
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org