Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
करणसमर्थत्वान्नं कदा सकलप्रमाणोत्पत्तिप्रसक्तिरित्यप्यसम्भाव्यम् ; तत्स्वभावभूतसामर्थ्य भेदमन्तरेण कार्यस्य कालादिभेदायोगात्, अन्यथा दृष्टस्य पृथिव्यादिकार्यनानात्वस्याऽदृष्ट पार्थिवादिपरमाण्वादिकारणचातुर्विध्यं किमर्थं समर्थ्यते ? नित्यस्वभावमेकमेव हि किञ्चित्समर्थनीयम् । यथा च कारणजातिभेदमन्तरेण कार्यभेदोनोपपद्यते तथा तच्छक्तिभेदमन्तरेणापि । न च यबैकयाशक्त्यै कमने का: शक्तीविभति तत्राप्यनेकशक्तिपरिकल्पनेऽनवस्थाप्रसङ्गात्, तयैव तदनेक कार्यं करिष्यतीति वाच्यम् ; यतो न भिन्नाः शक्तीः कयाचिच्छक्त्या कश्चिद्धारयतीति जैनो मन्यते-स्वकारणकलापात्तदात्मकस्यैवाऽस्योत्पादात् ।
जैन- यह कथन ठीक नहीं, क्योंकि प्रात्मादि में भिन्न स्वभाव माने बिना कार्य में भेद नहीं बनता, यदि स्वभाव भेद के बिना ही कार्य में देश भेद और काल भेद होता तो फिर पृथिवी आदि अनेक प्रकार के कार्यों को देखकर उन कार्यभेदों के द्वारा कारणरूप परमाणुनों में भेद काहे को माना जाय, अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन चारों के परमाणु पृथक् पृथक् क्यों मानते हो, आपको तो ब्रह्मवादी के समान एक ही नित्य स्वभाववाला कोई कारण मान लेना चाहिये, इस प्रकार कारण की जाति में भेद हुए बिना कार्य में भेद नहीं होता है यह सिद्ध हुआ, उसी प्रकार शक्तिभेद के बिना भी कार्य में भेद नहीं पड़ सकता है, यह भी सिद्ध हो जाता है ।
__ शंका-आत्मादिक कारणरूप पदार्थ जिस एक शक्ति के द्वारा अनेकों शक्तियों को धारण करता है, उन अनेकों शक्तियों को धारण करने में भी तो अनेक शक्तियों की उसे जरूरत पड़ेगी तो इस तरह से तो अनवस्था आती है, अतः कारणरूप वस्तु एक शक्ति के द्वारा ही अनेकों कार्य करती है ऐसा मानना चाहिए।
समाधान-यह कथन ठीक नहीं -हम जैन किसी भी वस्तु को उसकी शक्ति से भिन्न नहीं मानते हैं, अर्थात् प्रात्मा किसो एक ही शक्ति के द्वारा सर्वथा भिन्न ऐसी अनेक शक्तियों का धारक है इस प्रकार से नहीं मानते हैं, आत्मा आदिक पदार्थ जब किसी अन्य अवस्था-पर्यायरूप-से उत्पन्न होते हैं तब वे नाना शक्ति स्वरूप ही उत्पन्न होते हैं ऐसा हमने स्वीकार किया है।
नैयायिक-सहकारी की अपेक्षा लेकर ग्रात्मादि कारण कार्य को करते हैं और सहकारी कारण अनेक प्रकार के होते ही हैं, अत: कार्य में नानापना पाया जाता है।
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