Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
होता है, जिस प्रकार काटने का साधन परशु का काष्ठ के साथ संयोग ( अवान्तर व्यापार ) होता है, निर्विकल्पक ज्ञान फल है जैसे परशु का फल काटना होता है।
विशेष- ऊपर कहे गये प्रत्यक्ष प्रमा का करण तीन प्रकार का है- इन्द्रिय, इन्द्रियार्थसन्निकर्ष और ज्ञान, इनमें से इन्द्रिय उस अवस्था में करण होता है जब वस्तु का केवल निर्विकल्प प्रत्यक्ष हुश्रा करता है, जब आत्मा का मनसे संयोग होता है और मन किसी एक इन्द्रिय से संबद्ध होता है- मान लीजिये मन नेत्र से संबद्ध है और नेत्र इन्द्रिय का घट-अर्थ के साथ सन्निकर्ष हो जाता है तब हमें यह "कुछ है" ऐसा ज्ञान होता है, यही ज्ञान निर्विकल्प प्रत्यक्ष कहलाता है । यह निर्विकल्पप्रमा प्रत्यक्षप्रमाण का फल है।
"कदा पुनरिन्द्रियार्थसन्निकर्षः करणम यदा निर्विकल्पानंतरं सविकल्पक नाम जात्यादि योजनात्मकं डित्थो ऽयं, ब्राह्मणो ऽयं, श्यामो ऽयमिति विशेषण विशेष्यावगाहि ज्ञानमुत्पद्यते तदेन्द्रियार्थसन्निकर्षः करणम्" ।
इन्द्रिय और अर्थ का सन्निकर्ष कब करण होता है ? सो अब बताते हैं-जब निर्विकल्पज्ञान के बाद नाम जाति आदि से विशिष्ट यह डित्थ (ठूठ) है, यह ब्राह्मण है, यह श्यामरंगवाला है इस प्रकार का विशेषण तथा विशेष्य ग्राहक जो सविकल्पक ज्ञान होता, तब इन्द्रियार्थसन्निकर्ष करण होता है। - "कदा पुनर्ज्ञानं करणम्" ?
___" यदा उक्त सविकल्पकानन्तरं हानोपादानोपेक्षाबुद्धयः जायन्ते तदा निर्विकल्पज्ञानं करणम्" - अब तीसरा जो ज्ञान है वह करण कब होता-सो बताते हैं कि जब उस पूर्वोक्त सविकल्पक ज्ञान के बाद हानबुद्धि, उपादानबुद्धि, तथा उपेक्षाबुद्धि उत्पन्न होती है तब निर्विकल्प ज्ञान करण बनता है, इन तीनों प्रकार के करणों में प्रमा को उत्पन्न करना रूप फल है अर्थात् ज्ञान का जो साधकतम होता है वह करण कहलाता है और उसे ही प्रमाण कहा गया है एवं जानने रूप जो प्रमा या ज्ञान होता है वह प्रमाण का फल है, हां जहां यह तीसरे प्रकार का करण है वह निर्विकल्पक ज्ञान रूप है और त्याग आदि रूप सविकल्पक ज्ञान ही उसका फल है; किन्तु इन सबमें इन्द्रियों और पदार्थों का सन्निकर्ष होना आवश्यक है, अतः सर्वत्र सन्निकर्ष ही प्रमाण होता है, अब यहां सन्निकर्ष का विशेष वर्णन करते हैं- "इन्द्रियार्थयोस्तु यः सन्निकर्षः
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