Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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सन्निकर्ष प्रमाणवादपूर्वपक्ष:
साक्षात्कारि माहेतुः स षडविध एव । तद्यथा - संयोगः संयुक्तसमवायः संयुक्तसमवेतसमवायः, समवायः, समवेतसमवायः विशेष्यविशेषरणभावश्चेति । "
इन्द्र और पदार्थों का जो सन्निकर्ष प्रत्यक्षज्ञानका निमित्त होता है वह ६ प्रकार का है - संयोग, संयुक्तसमवाय, संयुक्तसमवेतसमवाय, समवाय, समवेतसमवाय, और विशेष्यविशेषणभाव ।
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इन ६ प्रकार के सन्निकर्षों का कथन क्रमश: इस प्रकार है—संयोग सन्निकर्ष – तत्र यदा चक्षुषा घट विषयं ज्ञानं जन्यते तदा चक्षुरिन्द्रियं घटोऽर्थः । अनयोः सन्निकर्षः संयोग एव, अयुतसिद्ध्यभावात् । एवं मनसान्तरिन्द्रियेण यदात्मविषयकं ज्ञानं जन्यते ऽहमिति तदा मन इन्द्रियं ग्रात्मार्थः, अनयोः सन्निकर्षः सन्निकर्षः संयोग एव ॥
जब नेत्र के द्वारा घट आदि विषय का ज्ञान होता है तब चक्षु तो इन्द्रिय है और घट अर्थ है, इन दोनों का सन्निकर्षं संयोग ही है, क्योंकि ये दोनों अयुतसिद्ध नहीं है, इसी प्रकार जब अन्तःकरणरूप मन के द्वारा आत्मा के विषय में "मैं हूं" इस प्रकार का जब ज्ञान होता है, तब मन तो इन्द्रिय है और आत्मा अर्थ है, इन दोनों का सन्निकर्ष भी संयोग ही कहलाता है |
"कदा पुनः संयुक्त समवायः सन्निकर्षः " ?
" यदा चक्षुरादिना घटगतरूपादिकं गृह्यते - घटे श्यामरूपमस्तीति तदा चक्षुरिन्द्रियं घटरूपमर्थः अनयोः सन्निकर्षः संयुक्त समवाय एव - चक्षुः संयुक्त घटे रूपस्य समवायात् । दूसरे नम्बर का संयुक्त समवाय नामका सन्निकर्ष कब होता है - सो बताते हैं
जब चक्षु के द्वारा घट के रूप का ग्रहण होता है कि घड़े में काला रंग है, तब चक्षु तो इन्द्रिय है और अर्थ घट में स्थितरूप है, इन दोनों का सन्निकर्ष संयुक्त समवाय ही है, क्योंकि चक्षु से संयुक्त जो घट है उसमें रूप का समवाय है ।
"कदा पुनः संयुक्तसमवेतसमवायः सन्निकर्षः" ? यदा पुनश्चक्षुषा घटरूपसमवेतं रूपत्वादिसामान्यं गृह्यते तदा चक्षुरिन्द्रियं रूपत्वादिसामान्यमर्थः, अनयोः सन्निकर्षः संयुक्तसमवेतसमवाय एव चक्षुः संयुक्त घटे रूपं समवेतं, तत्र रूपत्वस्य समवायात् ॥
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