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मा नोची जगह पर बैठी हो, बायक नामका पाप उत्पन्न करनेवाला वोष उत्पन्न होता है
द्रव्यं
अडिकाहरतालादि
निंदा
पृष्ठ पत्ति शुद्ध ३६ १६ नामको ४१ १३ से ४२ २६ यहाँ जा
२१ काम
२४ स्वरतर्यासमिति ४४ २७ जनपवाभिधम् ४५ १७ मुख्य वर्णन ४६ २४ सध्या सत्य ४८ १४ एतएष ५. १. पथा ५१ २० पुल ५२ ६ कार्यो
२१ समस्त शीतता ५५ १ उद्यम
१७ कारणम् ५८ २८ य यर ६० ३ यहा ५१ १५ क्षेत्र है तथा
अगुव
| पृष्ठ पंक्ति शुद्ध माम को ६६ १३ बैठी हो, सेर्या
६५ १५ वायक दोष उत्पन्न । कहां जा
होता है काय स्पनत्वेर्यासमिति
६६ २१ दव्यं अनपपाभिरधम्
७. ११हिकाहारतानादि मुख्यमन
७१ २५ निदा सरवासत्य ७३ ३ निर्मल अतएव
२१ २५.२५ गुणरत्न यमा
५३ २० लोम
८३ २८ स्पशोद कार्य
८३ २८ स्वस्थ सभसा शांतता
६५ २३ एवोदशम्म पद्गम
८६ २६ अधर्म कारणाम्
१०२ २४ परमयस्ना छापरीषं च यत्
१.३ २१ मत्यन्त शुभ गृहात स्था व्यक्त पौर
योगिमिः अव्यक्त के भेद
२७ शभेलरो भनीवर अर्थात ममुक्य वा गौड़ के १०१ १२ जसा दोभेव है इसप्रकार १०५ १६ श्लोक नं. ६५२
मूलप्रति में नहीं है
सास्कृष्ट लोभ नाम का
१.१ स्प षु वेगातट
१७ देते हैं। लपता है यह दोष | १११ २१ विषय महापाप उत्पन्न
१३३ र मोर करने वाला है।
११५ ३ निजित वारीपा साधुभ्यो
निर्जन गुणरूपी रल लाम स्पशेव स्वस्य एवोदरा मषःकर्म परमपनाछोत्ररोध प्रत्यन्त प्राशुभ
पौगिभिः शुभेतरी जैसा ६५३ मूल में नहीं
यात्री
६२ ६२ ६४ ६४ ६६
५ कमेत १३ भाषिक ११ लोभ
बेणासाह ५ सगता है
सर्वोत्कृष्ट हैं स्पषु देती है
मोर
मतोऽनिजित साना
६७ १२ साभ्याम्