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ঘূক্তি ॥ पृष्ठ पंक्ति प्रशुद्ध
| पृष्ठ पंक्ति पर ४ ५ ऋषभदेव । वृषभसेन
२७ तादीनिरिध्य कृतादीनि निलम १ २ मोर खूब वृद्धि की है और खूब वृद्धि की है | २८ १. पालामंगिनाम् ज्यालोपमागिनाम तथा मैंने भी जिसकी २६ १ धुरभाक्
दुःखमा पूणा स्तुति और १ संबसाहरा
सबलाहारा वृद्धि की है
| २५ देखने उत्पश्च देखने से उत्पक्ष ७३ पाचारांगों को माचारों को
| ३३ २४ मोक्तम्या
मोक्तम्पा २ पृथ्वी कायिक जीब पृथ्वीकामिक जीव
३७ २ कोधड़ से संसार के कीचड़ से संसार के भेदको भेषको
प्राणी पपाय सूब प्रानो पाए पौर ॥ ४ को कमी
जाते है
प्रशुभ ध्यानको ११ १७ अपने पर्यन्त अपने जीवन पर्यन्त
खामि ऐसे बाह
परिणहरूपी कीचड़ १३ १२ भई भुषा महंत मुना
में मवश्व कुष १४ ७ तसमाद तस्मात्
जाते है। १४ १७ दया पालन पया पालनो
३८-३६ २६ त्यामबहावत स्थाम महानत की १५ १७ मोर और सम्परवीन
पांच भावना कसे सम्यमान सम्यरचारित्र
है,परिसह त्याग २ विना बिना
महावन १२सान
मानि
३९ ३ ५ पाकिस्तान पांचवें पाकिस्पन १७ १३ करिव दुःसहा कचिद इस ३९ ७ के लिये सूर्य के समान के लिये
समान है पाप कमी २४ १८ नृणाम् नृपाद
पन्धकार को दूर २५ । घटने झूटने
करने के लिये सूर्य २५ ५ पूजा हा पूजा के प्रय
समान है २५
सिंद करते हैं अपना
|३६ १३ द्रव्य भी
१३ सिद्ध करते है प्रध्य भी सम्जनों
होगों लोकों के २६ १ दांत, शुभ दात शुश
स्वामी तीकर २५ २६मागमः शुद्धाय
परको सिर करते है
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