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प्रत्येक अधिकार के अन्त में दिये गये श्लोकों के योग के अनुसार श्लोकों का योग ३२४८ ही आता है जबकि प्राचार्य स्वयं इस ग्रन्थ के अन्त में एक श्लोक के द्वारा सम्पूर्ण श्लोकों का योग ३३६५ श्लोक बताते हैं। इन पलोकों के अनुसार कुल ११७ प्रलोकों का अन्तर है। इसके विषय में अनुवादक पं. लासारामजी साहब शास्त्री ने भी कुछ निर्देश नहीं दिया है। हम भी समयाभाव के कारण इसका स्पष्टीकरण नहीं कर पाये हैं इसका हमें खद है।
२. पाठक वृन्द इस ग्रन्थ का अध्ययन करते समय, प्रेस की भूल के कारण, श्लोक संख्या १०.३ से १७५० तक के ७४७ श्लोकों में जो क्रम की गलती हुई है उसे सुधार कर पढ़ने का कष्ट करें।
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