Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मतक
विशेषार्य-गाथा के तीन भाग हैं-१. नमस्कारात्मक पद, २. ग्रन्थ के वर्ण्य विषयों का संकेत और ३. उनके कथन करने की प्रतिज्ञा । यानी गाथा में ग्रन्थकार ने मंगलाचरण के साथ इस कर्मग्रन्थ में निरूपण किये जाने वाले विषयों के नाम निर्देश पूर्वक अपने ग्रन्थ को सीमा का संकेत किया है। ___ 'नमिय जिर्ण' पद से जिनेश्वर देव को नमस्कार किया है । इसका कारण यह है कि जिनेश्वर देव ने उन समस्त कर्मों पर विजय प्राप्त कर ली है जिनका बंध, उदय और सत्ता मुक्ति प्राप्त करने के पूर्व तक संसारी जीवों में विद्यमान रहती है। साथ ही इस पद से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कर्म प्रकृतियाँ चाहे कैसी भी स्थिति वाली हों, चाहे उनके विपाकोदय का कैसा भी रूप हो लेकिन उनकी शक्ति जीव की शक्ति, अध्यादमा के समक्ष हीन है, और दे विकासोन्मुनी आत्मा के द्वारा अवश्य ही विजित होती हैं। ये प्रकृतियाँ तभी तक अपने प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं जब तक जीव आत्मोपलब्धि के लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं होता है और अपनी शक्ति से अज्ञात रहता है। लेकिन जैसे ही अन्तर में उन्मेष, स्फूर्ति, उत्साह और स्वदर्शन की वृत्ति जाग्रत होती है वैसे ही बलवान माने जाने वाले कर्म निःशेष होने की धारा के अनुगामी बन जाते हैं।
कर्मविजेता जिनेश्वर देव बंध, उदय और सत्ता स्थिति को प्राप्त हुए कर्मों को जीतते हैं । लेकिन जीव के परिणामों की विविधता से कर्म प्रकृतियों के बंध आदि के ध्रुव, अध्रुव, घाती, अघाती आदि अनेक रूप हो जाते हैं , जो उनकी अवस्थायें कहलाती हैं । इन होने वाली अवस्थाओं में से 'धुवबंधोदयसत्ताधाइपुन्नपरियत्ता' पद द्वारा ध्रुवबंध, ध्रुव उदय, ध्रुव सत्ता, घाति, पुण्य, परावर्तमान इन छह का नामोल्लेख करके प्रतिपक्षी छह नामों को समझने के लिये सेयर सेतर'