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गृहस्थ सामान्य धर्म : ५ पूजा व उपचार करते हैं- तदनन्तर जो सभी भव्य प्राणियोंको अपनी अपनी भाषामें समझमें आनेवाली वाणीद्वारा एक ही समयमें उन (भव्य प्राणियो)के अनेक सदेहोको दूर करता है, अपने विहाररूप वायुद्वारा जो समस्त पृथ्वी पर विखरे हुए पापरूप रजराशिको दूर करता है, और जिसको 'सदाशिव' आदि शब्दोद्वारा पुकारा जाता है ऐसे श्रीअरिहंत भगवान है-वही परमात्मा है । तथा उसके भिन्न सब अपरमात्मा-संसारी जीव है। समुद्धत्यसम्यक् प्रकारसे उद्धार करनेके स्थान-शास्त्रों से-जो कमी हो उसे पूरा करके तथा जो अविरुद्ध हो उसे पृथक् पृथक् करके, उसको उद्धृत किया है-ले कर कहा है । कहांसे :-श्रुतार्णवात्शास्त्ररूप आगमोके समुद्रमेंसे-वह समुद्र कैसा है ? --जिसमें अनेक मंगी याने रचनारूप भवरें है,- अतिविशाल व विपुल सप्त नयरूप मणिमालाओसे भरपूर है, जो मन्दमतिरूपी कमजोर जहाजवाले जीवोंके लिये अत्यन्त दुस्तर है ऐसे शास्त्ररूप समुद्र से । धर्मविन्दु-धर्मविन्दु नामक, प्रकरण, जिसके लक्षण यथास्थान कहे जावेंगे-ऐसा धर्मबिन्दु नामको सार्थक करनेवाले इस ग्रन्थको मैं-प्रवक्ष्यामि-पढता इ-यानि रचना करता हूं। इसका किस तरह उद्धार करके ? वह कहते है-तोयविन्दुमिवोदधेः-जैसे समुद्र में से पानीकी बूद लेते हैं, वैसा यह प्रयत्न है।
- बिन्दु शब्दकी उपमा मूत्रके संक्षेपकी अपेक्षासे दी हुई है, अर्थक्की अपेक्षासे सोचें तो जैसे कपूरयुक्त जलका एक बिन्दु भी संपूर्ण घडे में व्याप्त हो जाता है वैसे ही यह धर्मबिन्दु प्रकरण समस्त