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प्रस्तावनी
अन्ये तु 'थडिलं संभोगिय' इति पठित्वा 'स्थंडिलं दृष्ट्वा' इति व्याख्यान्ति
अध्ययन प्रश्नविधौ निपुणोऽसावैकरात्रिक प्रतिमः ।
स्थण्डिलशायी यायादप्रतिबद्धश्च सर्वत्र ।। इतरे तु स्थाण्डिल: स्थांडिलशायी, सभोगीयुतः सधर्मयुक्त इति मत्वेदं पेठःयह अमितगतिकृत पद्य है। इस तरह दो अनुवाद पाठभेद से हैं।
१४. इसी तरह गाथा ४१२-४१३ (४१०-४११) की टीकामें भी पाठभेदका उल्लेख कर संस्कृत पद्यानुवाद दिये हैं जो अमितगतिसे भिन्न हैं।
१५. गाथा ४२३ (४२३) की टोकामें टिप्पणका उल्लेख करके विजयोदयासे भिन्न अर्थ नवम और दसम कल्पका बतलाया है।
१६. गाथा ४३२ (४३०) की टीकामें मनुष्य जन्मको दुर्लभतामें दस दृष्टान्त बतलाने वाली गाथा देकर लिखा है कि इनकी कथा प्राकृत टीका आदिमें विस्तरसे कही है। वहाँसे जानना।
१७. गा० ५११ (५०९) की टीकामें श्रीचन्द्रमुनिकृत निबन्धका उल्लेख है कि उसमें ऐसा ही व्याख्यान है।
१८. गा० ५२७ (५२५) में आचार्यको छत्तीस गुण सहित कहा है और गा० ५२८ (५२६) में छत्तीस गुण बतलाये हैं। किन्तु विजयोदयामें गाथासे सर्वथा भिन्न छत्तीस गुण कहे हैं। आशाधरजीने अपनी टीकामें उक्त संस्कृत टीका (विजयोदया) के छत्तीस गुण कहकर प्राकृत टीकामें कहे छत्तीस गण भी बतलाये हैं जो उससे भिन्न है। उसमें २८ मूलगुण भी हैं। २८ मूलगुणोंकी मान्यता दिगम्बर परम्परामें ही है । अतः प्राकृत टीकाकार दिगम्बर होना चाहिए।
१९. गा० ५५२ (५५०) की टीकामें लिखा है कि सामायिक दण्डक स्तवपूर्वक वृहत् सिद्धभक्ति करके बैठकर लघुसिद्ध भक्ति करता है यह प्राकृत टीकाकी आम्नाय है।
२०. गा० ५६० (५५८) की टीकामें अष्टप्रातिहार्य सहित प्रतिमा अरहन्तकी और आठ प्रातिहार्यरहित प्रतिमा सिद्ध की कही है।
२१. गा० ५६३ (५६१) की टीकामें कहा है कि श्रीचन्द्राचार्य सिद्धभक्ति चारित्रभक्ति और शान्ति भक्तिपूर्वक वन्दनाका विधान करते हैं।
२२. गा० ५६९ (५६७) में कृमिरागकम्बलका दृष्टान्त आया है। आशाधरजीने अपनी टीकामें इसका अर्थ संस्कृत टीका (विजयोदया) टिप्पन तथा प्राकृत टीकाके अनुसार पृथक्पृथक् दिया है।
२३. गा० ५९१ (५८९) में चन्द्रपरिवेषसे अन्नकी प्राप्तिका उदाहरण आया है। उसकी कथा आशाधरजीने श्रीचन्द्रटिप्पणसे दी है। इससे ज्ञात होता है कि उसमें कुछ कथाएँ भी होनी चाहिए।
२४. गा० ९२५ (९३१) की टीकामें आशाधरजीने उस गाथाका अन्य भी अर्थ देकर तदनुसारी अनुवादरूप श्लोक भी दिया है
अन्ये-'जमणिच्छती महिलां अवसं परिभुजंदे जहिच्छाए।
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