________________
अनेकान्त
कार्तिक वीर-निर्वाण सं०२४६५
स्वयम्भूस्तोत्र की रचना है भी अनुपम । समंत- श्रीमान पं० जिनदासजी न्यायतीर्थ शोलाभद्राचार्यका तत्वविवेचन एवं तार्किक ढंग जिस पुरने एक बार किसी आधारसे लिखा था कि प्रकार अद्भुत है उसी प्रकार उनकी स्तुतिरचना "मानतुङ्गाचार्य पहले श्वेताम्बर थे किन्तु एक भी अदभुत है--उस शैलीकी तुलना अन्य किसी भयानक व्याधिसे छुटकारा पाने पर दिगकिसी स्तुतिसे नहीं की जासकती।
म्बर साधु हो गये थे।" इस कथानकमें कितना समन्तभद्राचार्यके पीछे अनेक गणनीय साधु कि भक्तामरस्तोत्रमें कोई शब्द ऐसा नहीं पाया
तथ्य है, यह कुछ ज्ञात नहीं । हाँ, इतना अवश्य है तथा गृहस्थ स्तुतिकार हुए हैं, जिनकी बनाई हुई जाता जो दिगम्बरीय सिद्धान्तके प्रतिकूल हो। म्नुतियोंमें भी बहुत भक्तिरस भरा हुआ है
अस्तु । किसी किमीमें तो इतना इतना गूढभाव भरा हुआ है जिमका पूर्ण-रहस्य स्वयं उस रचयिताको ही उपलब्ध भक्तामर स्त्रीत्रको यद्यपि दिगम्बर, ज्ञान होगा। विषापहार-स्तोत्रमें पंडित धनञ्जय- श्वेताम्बर उभय सम्प्रदाय मानते हैं किन्तु वे दोनों जीने इस बातमें कमाल किया है। कुछ स्तोत्रोंमें श्लोकसंख्यामें एकमत नहीं हैं। यों तो दिगम्बर मांत्रिक शक्ति अमृतरूपसे रक्खी गई है, किसी- सम्प्रदाय में भी भक्तामर स्तोत्रकी श्लोकसंख्याके में मनोमोहक शाब्दिक लहर लहरा रही है, किसी- लिये दो मत पाये जाते हैं। प्रायः सर्व साधारण में सुन्दर छन्दों द्वारा लालित्य लाया गया है, लोग ४८ श्लोक ही भक्तामरमें मानते हैं और इत्यादि अनेक रूपमें स्तोत्र दीख पड़ते हैं। उन्हीं ४८ श्लोकोंका भक्तामरस्तोत्र अनेक रूपमें
इनमें से कुछ स्तोत्र ऐसे भी हैं जिनको दिग- प्रकाशित हो चुका है। इनकी कई टीकाएँ, कई म्बर, श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय आम तौरपर अनुवाद भी छप चुके हैं। अभी श्रीमान पं० ममान आदर भावसं अपनाते हैं। श्रीमान तुंगा- लालारामजी शास्त्रीने, भक्तामरस्तोत्रके प्रत्येक पद्यचार्यके रच हुए भक्तामरस्तोत्र को तथा कुमुदच- के प्रत्येक पादको लेकर और समस्यापूर्ति के रूपमें न्द्राचार्यके बनाये हुए कल्याणमन्दिरको दोनों ही
! तीन तीन पाद अपने नये बनाकर, २०४ श्लोकोंमम्प्रदाय बड़े आदरभावसे अपनाते हैं। ये दोनों स्तोत्र सचमुच हैं भी ऐसे ही, जिनको सब कोई का भक्तामर-'शतद्वयी' नामक सुन्दर स्तोत्रअपना सकता है। इस बातमें हमको प्रसन्नता निर्माण किया है । प्रत्येक श्लोक केवल एक-एक होनी चाहिये कि तत्वार्थसूत्रके समान हमारे दो पादकी समस्यापूर्ति करते हुए ४८ पद्योंका एक स्तोत्र भी ऐस है जिनमें दिगम्बर श्वेताम्बर सम्प्र- सुन्दर राजीमती नेमिनाथ-विषयक 'प्राणप्रिय' दाय समानरूपसे साझीदार हैं। दोनों स्तोत्रोंमें भक्तामरस्तोत्रकी प्रसिद्धि अधिक है। मानतुंगा
काव्य भी प्रकाशित हो चुका है। यंत्र-मंत्र-सहित चार्य दिगम्बर थे या श्वेताम्बर यह बात अभी जो भक्तामरस्तोत्र प्रकाशित हुआ है वह भी ४८ इतिहाससे ठीक ज्ञात नहीं होपाई है; क्योंकि न तो पद्योंका ही है। उनकी और कोई निर्विवाद रचना पाई जाती है, किन्तु कुछ महानुभावोंका खयाल है कि जिससे इस बातका निर्णय होसके और न भक्ता
भक्तामरस्तोत्रमें ५२ श्लोक थे, प्रचलित भक्तामरमरस्तोत्रमें ही कहीं कुछ ऐसा शब्द-प्रयोग पाया जाता है, जिससे उनका श्वेताम्बरत्व या दिगम्ब- स्तोत्रम ४ श्लोक कम पाय जाते है । वे निम्न रत्व निर्णय किया जासके ।
लिखित ४ श्लोक और बतलाते हैं