________________
५१०
अनेकान्त
[आषाद, वीर-निर्वाण सं० २४६५
वि० सं० १३८९ में जिनकुशलसूरि सिन्धके थे । मंदिर बहुत थे। जैनधर्मकी प्रभावनाके अनेक देराउल नगरमें स्वर्गवासी हुए थे। और उनके कार्य होते थे । दीक्षाएँ और प्रतिष्ठाएँ होती थीं। शिष्य जिनमाणक्यसूरि गुरुकी समाधिके दर्शन ऊपरके संवतोंसे हम देख चुके हैं कि वि. सं. करने गये थे । वहाँसे जेसलमेर जाते हुए पानीके पूर्व ४०० से विक्रमकी सतरहवीं शताब्दि तक अभावसे वे स्वर्गवासी हुए थे।
तक तो जैनसाधुओंका विहार और जैन-घटनाएँ . वि०सं०१४६० में भुवनरत्नाचार्यने द्रोहदट्टामें बराबर सिन्धमें होती रही हैं। चौमासा किया।
इसी प्रकार सतरहवीं शताब्दिके बाद भी वि० सं० १४८३ में जयसागर उपाध्यायने साधु सिन्धमें विचरे हों, इस सम्बन्धमें जब तक मम्मर वाहन में चौमासा किया था। कुछ प्रमाण न मिलें तब तक हम यह मान सकते __ वि. सं. १५८३ में फरीदपुरसे नगरकोटकी हैं कि अखिरके लगभग ३०० वर्षोंसे साधुओंका यात्रा करनेके लिये एक संघ निकला था। भ्रमण सिन्धमें बन्द रहा होना चाहिये। . _ वि.सं.१४८३में जयसागर उपाध्याय माबारख- एक स्पष्टीकरण करना आवश्यक है। उपयुक्त पुरमें आयेथे । उस वक्त यहाँ श्रावकोंके १०० घर थे। जिन-जिन गाँवोंमें जैनसाधुओंके आनेका और
वि.सं.१४८४ में जयसागर उपाध्यायने मलीक- जैन घटनाओंके घटनेका उल्लेख किया गया है वे माहनपुर में चौमासा किया था।
सभी गाँव अभी सिन्धमें हैं, ऐसा नहीं है। उनमें, वि. सं. १४८४ में जयसागर उपाध्यायने से बहुतसे गाँवोंका तो अभी पता भी नहीं है । कांगड़ामें आदिनाथ भगवान्की यात्रा की थी। कुछ गाँव भावलपुर स्टेटमें है, कुछ पंजाबमें है
सोलहवीं शताब्दिमें जिनचन्द्र-सूरिके शिष्य कुछ राजपूतानेमें है, और कुछ तो ठेठ सरहदके जिनसमुद्रसूरिने सिन्धमें 'पश्चनदकी' साधना ऊपर हैं । ऐसा होनेका एक ही कारण है और वह की थी।
यह, कि सिन्धकी हद अभी जितनी मानने में __वि. सं. १६५२ में जिनचन्द्रसूरि पंचनदको आती है उतनी पहले नहीं थी । पंजाब, अफगामाध करके देराउल नगर गये थे। जहाँ जिन- निस्तान, वायव्य सरहद, बलचिस्तान, भावलपर, कुशलसूरिके पगलेके दर्शन किये थे।
राजपूताना, और जेसलमेर, इनका बड़ा भाग __वि. सं १६६७ में समय सुन्दरसूरिजीने उच्च- सिन्धके ही अन्तर्गत था, और इसीलिये उन सब नगरमें 'श्रावक-श्राराधना' नामके प्रन्थको रचना गाँवोंका समावेश सिन्धमें किया है। की थी
इन सब बातोंको देखते हुए यह कहना सरा___ इसके अतिरिक्त मुलतान, खोजावाहन, परशु- सर ग़लत मालूम होता है कि ढाई हजार वर्षमें रोड कोट, तरपाटक, मलीक वाहनपुर गोपाचल- कोई जैनसाधु सिन्धमें नहीं आये हैं । बेशक पुर कोटीमग्राम, हाजीखा-डेरा, इस्माइल-खाँ डेरा, नैऋनकोट, जो कि अभीका हैद्राबाद है वहाँ था । मेहरानगर, खारबारा, दुनियापुर, सकीनगर, नया- एक समयका दस-बीस मच्छीमारोंका छोटासा नगर, नवरंगखान, लोदीपुर आदि अनेक ऐसे गाँव घडबोबंदर जो कि वर्तमानमें कराचीके नामसे गांव हैं, जहाँ अनेक जैन घटनाओंके होनेके मशहूर है, वहाँ किसीके आनेका प्रमाण नहीं उल्लेख, पट्टावलियों और दूसरे ग्रन्थोंमें उपलब्ध मिलता है। बाकी सतरहवीं शताब्दि तक सिन्ध होगे हैं।
जैनसाधुओंके बिहारसे पुनीत था । यह बात इस परसे यह स्पष्ट मालूम होता है कि किसी निश्चित है । समय सिन्ध में बहुत बड़ी तादादमें साधु विचरते