________________
५५०
अनेकान्त
[प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाणसं०२४६५
%
%
D
नबीन शात होती है कि नन्झसूत्रके सिवाय अन्य। "बीसुतरसयगणबाबामसिपाहु सम्म प्रमोकिसी प्रन्थमें इसका कोई सल्लेख उपलब्ध श्वे. णियपुम्वणिस्स।" । आगम-साहित्यमें नहीं है। क्योंकि कोषक्रमके इस टीकाका मूल परिमाण ८१५ श्लोक-जितना अनुसार उक्त व्याख्याके अन्तमें केवल 'न' लिखा और सूत्रसहित कुल परिणाम ९५० श्लोक-जितना हुआ है, जोकि केवल 'नन्दीसूत्र' का ही बोधक है। दिया है। टीकाकारने, टीकाके निम्न अन्तिम
भाशा है इस विषय पर हमारे समर्थ अधि- वाक्यमें, अपना कोई नाम न देते हुए इतना ही कारी ऐतिहासिक विद्वान विशेष प्रकाश डालेंगे सूचित किया है कि 'मेरा यह प्रयास केवल मूलऔर शास्त्रभंडारोंके मालिक अपने अपने भंडारोंमें गाथाओंके संयोजनार्थ है, स्पष्ट अर्थ तो चिरन्तन छानबीन करनेकी कोशिश करेंगे,जिससे यह प्रन्थ- टीकाकारोंके द्वारा कहा गया है'-... .. रत्न प्रकाशमें आसके।
"गाथासंयोजनार्थोऽयं प्रयासः केवलोमम । . . . सम्पादकीय नोट
अर्थस्तूतः स्फुटो शेष टीकाकृमिरिचरन्तनैः॥" .. नन्दिसूत्रकी उक्त टीकामें जिस 'सिद्धप्रामृत' ही
. इस सिद्धप्राभृतका प्रारम्भ निम्न गाथाओंसे
होता हैका जललेख है वह चिरन्तनाचार्य-विरचित-टीकासे
" तिहुयणपणए तिहुपणगुणाहिए तिहुयणाइसपणाणे। भिन्न उस दूसरी टीकाके साथ भावनगरकी आत्मा.. उसमादिवीरचरिमे तमरपरहिए पणमिऊणं ॥ १॥ नन्द-प्रन्थमालामें (सन् १९२१में ) मुद्रित होचुका सुणिडणभागमणिहसे सुजिउणपरमत्यसुत्तगंथधरे । है जिसका हवाला मलयगिरिसूरि अपनी टीकामें चोइसपुम्बिगमाई कमेण सम्वे पणविकणं ॥२॥ देरहे हैं। मुद्रित प्रतिपरसे मूलप्रन्थकार तथा टीका- विक्षविल्तीहि पहिं महर्हि चाणुमोगदारेडिं। कारका कोई नाम उपलब्ध नहीं होता । अन्ध- रवेलाइमग्गणासु प सिद्धार्ण परिणया भेया ॥३॥ सम्पादक मुनि-श्रीचतुरविजयजीने अपनी प्रस्ता- जहाँ तक मैंने इस प्रन्थपर सरसरी नजर बनामें ग्रहांतक सूचित किया है कि मूलप्रन्थकार डाली है, मुझे यह ग्रंथ अपने वर्तमान रूपमें तथा इस उपलब्ध टीकाके कर्ताका नाम कहींसे भी कुन्दकुन्दचार्य कृत मालूम नहीं होता। अपराजित उपलब्ध नहीं होता है। साथ ही, यह भी सूचित सूरिने जिस 'सिद्धप्रामृत' का उल्लेख किया है वह किया है कि इस टीकाकी एक प्रति संवत् ११३८ इसी सिद्धप्रामृतका उल्लेख है ऐसा उनके उल्लेखपर वैशाखशुवि१४ गुरुवारकी ताडपत्र पर लिखी हुई से स्पष्ट बोध नहीं होता । हो सकता है कि वह पावरतानाके सेठ मानन्दजी कल्याणजीके शान- कुन्दकुन्दके किसी जुदे सिमामृतसे ही सम्बन्ध मंडारमें मौजूद है, इससे यह टीका अर्वाचीन रखता हो अथवा यह वर्तमान सिद्धप्रामृत कुंएनहीं है। मूलपत्यकी गाथा संख्या १२० है जैसाकि कुन्दकुन्दके सिद्धप्रामृतका ही कुछ घटा-बढ़ाकर अन्तिमगाथा और निम्न वाक्यसे प्रकट है.... किया गया विकृत रूप हो। कुछ भी हो इस विषय
पीचरसपमेगं गापाल पुष्पवित्वं । की विशेष खोज होनी चाहिये। - नित्यारेण महत्वं मुपाणसारेषा पेपर " ..