Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 724
________________ १५४ अनेकान्त [आश्विन, वीर-निर्वाण सं०२४६५ भी किया करती हैं ! इससे बढ़कर हमारी मर्या- नैतिकताका ढोंग यदा-कदा करनेका मौका उन्हें दाओंका दिवालियापन किस प्रकार निकाला जा- हमारा पर्दा दे दिया करता है ? क्या इसी नैतिक सकता है ? जो सभ्य हैं, शिक्षित हैं और उन्नत चरित्रका गर्व उन्हें आजतक हैं ? बलिहारी है इन विचारोंके हैं उनसे तो पर्दा, उनसे असहयोग; पर मर्दोकी बुद्धि की ! इस विषयमें इतना लिखना जिन्हें न कपड़े पहनने की तमीज है, न उचित भी उनके भुखपर कीचड़ फेंकनेका इल्जाम लगाने बातें करनेका शऊर, उनसे हँसी दिल्लगी! थू थू ! वाला सिद्ध होगा ! पर उफ़ यह सितमगर कब ! क्या कत्रमें जीवित गाड़कर इसी उद्देश्यको पानेकी 'पोसवालसे अभिलाषा हमारे पुरुषवर्गकी थी ? क्या इसी सुभाषित 'धर्मसे बढ़कर दूसरी और कोई नेकी नहीं, और उसे भुला देनेसे बढ़ कर दूसरी कोई बुराई भी नहीं है। 'संसार भरके धर्मग्रन्थ सत्यवक्ता महात्माओंको महिमाकी घोषणा करते हैं।' 'अपना मन पवित्र रक्खो, धर्मका समस्त सार बस एक इसी उपदेशमें समाया हुआ है। बाकी और सब बातें कुछ नहीं, केवल शब्दाडम्बर मात्र हैं।' 'धन-वैभव और इन्द्रिय सुखके तूफानी समुद्रको वही पार कर सकते हैं कि जो उस धर्म-सिन्धु मुनीश्वर के चरणोंमें लीन रहते हैं।' 'केवल धर्म जनित सुख ही वास्तविक सुख है । बाकी सब तो पीडा और लज्जा मात्र हैं।' 'भलाई बुराई तो सभी को पाती है, मगर एक न्यायानिष्ट दिल बुद्धिमानोंके गर्वकी चीज़ है।' 'पालस्यमें दरिद्रताका वास है, मगर जो आलस्य नहीं करता, उसके परिश्रममें कमला बसती है।' 'बड़प्पन हमेशाही दूसरों की कमजोरियों पर पर्दा डालना चाहती है; मगर भोछापन दूसरोंकी ऐवजीइके सिवा और कुछ करनाही नहीं जानता।' 'लायक लोगों के प्राचरणकी सुन्दरताही उनकी वास्तविक सुन्दरना है; शारीरिक सुन्दरता उनकी सुन्दरतामें किसी तरहकी अभिवृद्धि नहीं करती है।' 'खाकसारी-नम्रता बलवानोंकी शक्ति है और वह दुश्मनोंके मुकाबले में लायक लोगोंके लिये कवचका काम भी देती है।' -तिरुवल्लुवर

Loading...

Page Navigation
1 ... 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759