Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 747
________________ वर्ष २, किरण १२ मनुष्योंमें उच्चता-नीचता क्यों ? ६७७ में उच्च अथवा नीचगोत्री ही माना जायगा। अधिवेशनों में भंगीका भी काम करनेवाले स्वयंसेवकोंको, ____ कर्मकांडमें पठित 'श्राचार' शब्दका तिरूप लौ- कर्त्तव्य-पालनकी वजहसे प्रतिदिन अपने बचोंका मैला किक श्राचार अर्थ करनेका यह श्राशय है कि जब कोई साफ़ करनेवाली माताको, दूसरोंको अच्छा ( निरोग) जीव सिर्फ अपनी आजीविका के अर्थात् जीवन संबन्धी करनेकी भावनासे बड़ी निर्दयतापूर्वक चीरा-फाड़ीका श्रावश्यकताओंकी पूर्ति के लिये ही दीनतापूर्ण अथवा काम करनेवाले डाक्टरको, ज्ञानवृद्धि के लिये भक्तिपूर्वक करतापर्ण कार्य करता है तभी वह जीव नीचगोत्री माना गुरुकी सेवा करनेवाले शिष्यको तथा अममर्थ और जायगा । यही कारण है कि सेवाभाव या कर्तव्यपालन अमहाय लोगांकी सहायता प्रादिके लिये भीख तक श्रादिकी वज़हमे यदि कोई जीव इस प्रकारके कार्य- मांगनेवाले बड़े बड़े विद्वानों और श्रीमानको लोकव्यव. करता भी है तो भी वह जीव लोकव्यवहारमें नीचगोत्री हारमं न केवल नीच नहीं माना जाता है बल्कि ऐसे नहीं माना जाता है। जैसे भंगी अथवा भिग्यारी मिर्फ़ लोग लोकव्यवहारमें श्रादरकी दृष्टिसे ही देखे जाते हैं; अपना पेट भरने के लिये ही दीनतापूर्ण लोकनिंद्य कार्य क्योंकि इनके हृदयमें इन कार्योको करते समय सेवाभाव करता है तथा ठगी अथवा डाकेज़नी करनेवाले लोग व कर्तव्यपालनकी भावना जाग्रत रहती है । इतना मिर्फ अपना पेट भरने के लिये ही बड़ी निर्दयता और अवश्य है कि यदि इन कार्यों को करने में कोई अनुचित करताके साथ दूसरे प्राणियोंको ठगना श्रादि कार्य किया स्वार्थभावना प्रेरकनिमित्त बन जाती है तो इनको उम करते हैं, इमलिये ये तो नीचगोत्री ही माने जाते हैं । ममय नियममे नीनगोत्रकर्मका बन्ध होगा। पल भवाभावसे याज कल कांग्रेम आदि मंस्थाओंके इसी प्रकार वैदिक धर्मग्रन्याम प्रतिपादित अश्वमेध, माने जाते हैं या लेम्बकजीके मतानमार माने जाने नरमेध श्रादि पज़ यद्यपि कर कर्म कहे जा सकते हैं चाहिय ? एक बात यहाँपर खास तौरसे स्पष्ट होने की परन्तु इनके पीछे धर्मका मंबन्ध जुड़ा हुश्रा है, इमलिये है और वह यह कि व्यापारमें जो ठगी करते हैं वे ठग इनको करनेवाला ब्राह्मण दुसरे धर्मानुयायियोंकी दृष्टिम हैं याकि नहीं? ग्रीर एक राजा नसरेके राज्यको अपने पापी तो कहा जा सकता है परन्तु इनका ताल्लक सिर्फ राज्य में और इसरोंकी सम्पत्तिको अपनी सम्पत्ति मि उसकी आजीविकास न होने के कारण लोकव्यवहारमें लाने के लिये जो दूसरे राजापर चढ़ाई करता है और वह नीनगोत्री नहीं माना जाता है । और तो क्या उसके राज्यको तथा वहाँकी प्रजाकी बहुतसी सम्पत्तिको शत्रुता के लिहाजसे बदला लेनेकी भावनामे प्रेरित होकर बीनकर हडप कर जाता है वह डाकेज़न अथवा संगठित दुमरे प्राणियोंको जानसे मार देनेवाला व्यक्ति भी लोक इमर स्कैत हैया कि नहीं ? यदि ऐसा है तो वैसे ठग ग्या में अधार्मिकती माना जाता है परन्तु इस तरहसे उसको कोई नीचगोत्री नहीं मानता है क्योंकि यह कार्य उमने पारियों (वैश्यों) और राजाभोंको भी नीचगोत्री कहना अपनी श्राजीविका के लिये नहीं किया है। इसी तरहका होगा-भले ही वे भरत जैसे चक्रवर्ती राजा ही क्यों श्राशय उच्चगोत्रके विषय में भी लेना चाहिये । जैसे भंगी महो। परन्तु उन्हें नीचगोत्री नहीं माना जाता है, अपने पेशेको करते हुए समय पड़नेपर मरनेकी संभावना सब नीच ऊँचगोत्रकी मान्यता का नियम क्या रहा? -सम्पादक होनेपर भी यदि भीख माँगनेको तैयार न हो, व भिखारी

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