Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 758
________________ शास्त्रीने किया है । दूसरे ग्रंथकी सिर्फ ५२० प्रतियाँ सहित निकालना प्रारम्भ किया जायगा और इस ही उपहारके लिये श्रीमान सेठ नागालालजी जैन अंकमें उसके कमसे कम आठ पेज जरूर रहेंगे। छाबड़ा, बम्बई बाजार खण्डबाकी भोरसे भेंट माथ ही, सामग्रीके संकलन 'एतिहासिक जैनकोश' म्वरूप प्राप्त हुई हैं, इसलिये जिन ५०० ग्राहकोंका का भी निकल ना प्रारम्भ किया जायगा और उसके अगले वर्षका मूल्य सबसे पहले प्राप्त होगा उन्हें ही भी ८ पेजके रूपमें प्रायः एक फार्म जुदा रहेगा। इस वे भेटमें दी जायेंगी और समाधितंत्र ग्रंथ उन सब कोशमें महावीरभगवानकेसमयसे लेकर प्रायः अब ग्राहकोंको दिया जायगा जिनका मूल्य विशेषात तकके उन सभी दि० जैन मुनियों आचार्यों, भट्टानिकलनेसे पहले मनिबार्डर आदिसे वसूल हो रकों, संघों, गणों, विद्वानों, ग्रंथकारों, राजाओं, जायगा अथवा विषाकी बी. पी. द्वारा प्राप्त हो मंत्रियों और दूसरे खास खास जिनशासन सेवियोंजायगा। अतः ग्राहकोंको, जहाँ तक भी हो सके, का उनकी कृतियों महित संक्षेपमें वह परिचय अगले वर्षका मूल्य मनिारसे भेजनेकी शीघ्रता रहेगा जो अनेक ग्रंथों, ग्रन्थ प्रशस्तियों, शिलालेखों करनी चाहिये। और ताम्रपत्रादिकमें बिखरा हा पड़ा है। इससे जिन ग्राहकोंका मूल्य विशेषाङ्क निकलनेसे पहले भारतीय ऐतिहासिक क्षेत्रमें कितना ही नया प्रकाश प्राप्त नहीं होगा, उन्हें विशेषाङ्क श)की वी० पी. पड़ेगा । और फिर एक व्यवस्थित जैन इतिहास से भेजा जायगा, जिसमें तीन रुपया मूल्यके अति- सहज ही में तय्यार होसकेगा। इसके सिवाय, जो रिक्त ।) उपहारी पोष्ठेज खर्च और 2) वी.पी. खर्च 'जैनलक्षणावली' बीरसेवामन्दिरमें दो ढाई वर्षसे . का शामिल होगा। तय्यार हो रही है उसका एक नमूना भी सर्वसाजो सज्जन किसी कारणवश अगले वर्ष ग्राहक धारणके परिचय सभा विद्धानोंके परामर्श लिय न रहना चाहें वे कृपया १५वीं किरणके पहुँचने पर - साथमें देनेका विचार है, जो प्रायः एक फार्मका , उसमें निम्न पतेपर सूचित करदेवें, जिससे अने होगा। कान्त-कार्यालयको बी० पी० करके व्यर्थका नुकसान जिन ग्राहकोंका मूल्य पेशगी वसूल हो जायगा न उठाना पड़े। कोई सूचना न देनेवाले सज्जन । उन्हें यह अंक प्रकाशित होते ही शीघ्र समय पर अगले वर्षके लिये ग्राहक समझे जायेंगे और उन्हें मिल जायगा, शेषको वी० पी० से भेजा जायगा। विशेषाङ्कवी० पी० से भेजा जायगा। चूंकि डाकखाना बहुतसे वी० पी० पैकट एक साथ नहीं लेता ई-थोड़े थोड़े करके कितने ही दिनों में व्यवस्थापक 'अनेकान्त' लेता है इसलिये जिन ग्राहकोंका मूल्य पेशगी कनॉट बोक्स नं० नहीं पायेगा उन्हें विशेषाकृके बहुत कुछ देरसे 'अनेकान्त' का विशेषाङ्क मिलनेकी संभावना है। साथ ही, वी० पी० के खर्चका तीन आना चार्ज भी और बढ़ जायगा। 'अनेकान्त' की अगली किरण अर्थात् तृतीय इमलिये यह मुनासिब मालूम होता है कि ग्राहकवर्षका प्रथम भाबीर शासनाई नामका विशे- जन आगामी वर्षके लिये निश्चित मूल्य ३) रु० षाकहोगा । पृष्ठ संख्या भी इसकी पिछले विशेषाङ्क उपहारी पोष्टेज।) सहित शीघ्र मनिआर्डर आदि से अधिक १५० पेजके करीब होगी। इसमें अच्छे- द्वारा नीचे लिखे पतेपर भेज देखें। ३१) आते ही अच्छे विद्वानों के महत्वपूर्ण लेख रहेंगे और उनके उन्हें उपहारकी पुस्तकें भेजदी जायेंगी। जो सजन द्वारा कितनी ही महत्वकी ऐसी बातें पाठकोंके उपहार न लेना चाहें वे ३) ही भेज सकते हैं। सामने पाएँगी, जिनका उन्हें अभी तक प्रायः कोई पता नहीं था। सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि • व्यवस्थापक 'अनेकान्त' । इस अंकसे धवलावि 'भुतपरिचय' को मूल सूत्रादि कनॉट सर्कस, पो० बोक्स नं०४८, न्यू देहल ।

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