Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 740
________________ अनेकान्त [आश्विन, वीर-निर्वाण स०२४६५ - २ देशके लिए .. यह हुकम दिया गया था कि वे एक रूसी नियोके दरस्सी सेनाको धोका देने के लिए जापानी समुद्री बाजेको वास्दसे उड़ावें। लगभग सभी जापानी सेनाके कमान्डरने यह सोचा कि एक जापानी जहाज़ सिपाही यह प्रयत्न करते हुए गोलियोंसे उड़ा दिए गये । स्सी सेनाकी प्रांखों के सामने समुद्र में डुबाया जाय, केवल चन्द सिपाही बाकी बच्चे और उस दरवाजे तक जिससे वे जहाजक रख जानेपर मागे बदमावें। कमान्डर पहुँच सके। उनके पास बारूदके प्रतीते थे, जिन्हें ने अपनी फ्रॉनके नाम गुप्त अपील निकाली कि जो किवादोंसे चिपकाकर उदाना था । उन सिपाहियोंने सिपाहीएक जान जोखमके कामके वास्ते अपने भापको प्रलीतोंको किवादों पर रखकर अपनी छातियोंसे उन्हें पेश करना चाहते हों वे शीघ्र अपनी स्वीकृतिका पत्र दबाया और भाग लगादी। एक जोरका धमाका हुआ कौजी कातरमें भेजवें । कमान्डरके माश्चर्यकी कोई और दरवाजा तथा के सिपाही साफ उड़ गये। उनके सीमा न रही जब उसने अगले दि इस बलिदान और पास्मत्यागके कारण अन्य जापानी स्वीकृतिपत्र कातरमें देखे। हरएक सिपाहीने अपने सिपाही किले में दाखिल हुए और विजय प्राप्त की। पत्रमें यह प्रार्थना की थी कि उस विकट कामके लिए उसे जरूर चुना जाय । कमान्डरके लिए चुनाव करना ४ यह न कहना कि जापान में.... स्व. महर्षि शिवव्रतलाल एक बार जापानमें रेल कठिन होगया । अगले दिन उसने फिर लिखा कि उन्हीं सिपाहियोंको चना जायगा जो अपनी अर्जियाँ अपने द्वारा सफर कर रहे थे। पाप मांस नहीं खाते थे। यात्रामें निरामिष भोजन मिलना कठिन हो गया। एक खूनसे लिखकर भेजेंगे । अबकी बार जापानी सिपाहि स्टेशन पर महर्षि खानेकी तलाश में चितित-से बैठे थे। योंके खूनसे लिखे पहिलेसे भी अधिक स्वीकृति-पत्र वातरमें पाए । कमान्डर भाश्चर्य और ख़ुशीसे कुर्सीसे इतने में एक जापानी नवयुवक उनके सामने पाया और उड़ना पड़ा और कहने लगा "कोई कारण नज़र नहीं उनकी चिंताका कारण पूछा । शिवव्रतलालजीने समका . माता कि इस पुरमें जापानकी हार हो। हमारी कि यह कोई दुकानदार लड़का है और उससे अपना विजय निश्चित है।" कमान्डरने अपनी स्कीमके अनु समस्त हाल कहकर निरामिष भोजन खानेको कहा। सार एक पुराने जहाज़में कुछ सिपाहियोंको बिठाकर बोदी ही देरमें वह युवक काफी खाना लेकर उनके सारूसी क्रौजोंके सामने जहाजको समुद्र में डुबवा दिया। मने भागया । खाना ले चुकने के बाद शिवमतलालजीने उससे खानेके दाम पूछे । उस जापानी नवयुवकने बड़ो रूसी धोके में पागए और जापानकी विजय होगई। विनयसे प्रार्थना करते हुए कहा-"इस सानेकी कीमत कह नहीं है। जब भाप भारतवर्ष बौटें उस समय ३ देशभक्त वीर सिपाही छपाकर पहन कहना कि जापान में मुझे खाना मिलने रूस-जापान-युद्ध में कुछ जापानी सिपाहियोंको में कट "...

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