Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 741
________________ तत्वचची मनुष्यों में उच्चता-नीचता क्यों ? (२) लेखक-पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य] पहले लेख में हमने यह बतलानेका प्रयत्न किया है वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण और साधु उच्चगोत्री 11 परन्तु "कि मनुष्योंमें जो उच्चता-नीचताका भेद है वह जबतक उच्चगोत्र और नीन गोत्रका व्यावहारिक परिशान अागम विरुद्ध नहीं है । कर्मकांड, लब्धिसार और जय- न हो जावे तब तक क्यों तो सम्मुर्छनादि मनुष्य नीचधवलाके जिन प्रमाणोंके बल पर श्रीमान् बाब सूरज- गोत्री हैं और क्यों भोगभमिज श्रादि मनुष्य उच्चगोत्री भानुजी वकील मनुष्योंको वे.वल उच्चगोत्री सिद्ध करना हैं ? इस प्रश्नका समाधान कठिन ही नहीं असंभव-सा चाहते हैं उन्हीं प्रमाणोंके आधार पर मनुष्य उच्च और जान पड़ता है, और सबसे अधिक जटिल समस्या तो नीच दोनों गोत्रवाले सिद्ध होते हैं। लेकिन यह बात आर्यखंड में बमनेवाले मनुष्योंकी है जिनमें मनुष्य जातिअवश्य है कि मूलप्रश्न अभी भी जैसाका तैसा जटिल की अपेक्षा समानता + होनेपर भी किसीको नीच और बना हुश्रा है अर्थात् शास्त्रीय प्रमाणोंके आधार पर किसीको उच्च बतलाया जाता है, इसलिये इन बातोंका मनुष्योंमें उच्च और नीच दोनों गोत्रोंका उदय सिद्ध हो निर्णय करनेके लिये गोत्रकर्म, उसका कार्य (व्यावहाजाने पर भी उच्चता और नीचताका स्पष्ट परिज्ञान हुए रिकरूप) उसमें उच्चता नीचताका भेद श्रादि और भी बिना यह कैसे जाना जा सकता है कि अमुक मनुष्य प्रासंगिक एवं आवश्यक बातों पर विचार किया जाता उच्चगोत्री है और अमुक नीच गोत्री? ___ यद्यपि पहले लेखमें शास्त्रीय प्रमाणोंके आधार पर विद्याधर श्रेणियों में बसनेवाले मनुष्यों में मार्चहमने यह भी बतलानेका प्रयत्न किया है कि सम्मूर्छन, खंडके समान अपने अपने पाचरणके अनुसार ही गोत्र अन्तर्वीपज व म्लेच्छखंडोंमें रहनेवाले सभी मनुष्य का व्यवहार समझना चाहिये। नीचगोत्री हैं, आर्यखंडमें रहनेवाले शूद्र व म्लेच्छ भी मनुष्यजातिरेकैव जातिकमोदवोद्भवा । वृत्तिनीचगोत्री हैं तथा भोगभूमिज व आर्यखंडमें रहनेवाले भेदा हि त देवाचातुर्विध्यमिहारनुते ॥ (मादिपुराण)

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