Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 727
________________ वर्ष २, किरण १२] वे श्राये जाता है; फिर उनका दर्शन-पूजा करनेसे पतित कहे नहीं है। इसके विपरीत पह मानना कि अमुक अंग अपजानेवाले जैनी क्यों रोके जाते हैं ? पतित तो वे हैं वित्र और नीच है राष्ट्र-धर्म-जाति और देशके प्रति भयंजो भगवान महावीर के भक्तोंसे घृणा करते हैं, उनको कर पाप है। जिस किसीमें धार्मिकता, जातीयता और वीर-प्रभुके पास जानेसे रोकते हैं और इस तरह मन्दि- राष्ट्रीयता नहीं वह मनुष्यरूपमें पशु समान है और इस रोंके उद्देश्यको ही हानि पहुंचाते हैं। पवित्र भारत वसुन्धरा पर भार रूप है। __यह विश्वास और धारणा कि मैं पवित्र हूँ और यह मान्यता कि देवालयोंमें स्थित जिनेन्द्र देवकी वह अपवित्र है तथा उसके (दस्सादिके ) प्रवेशसे मंदिर मूर्तियाँ किसी व्यक्ति अथवा समुदाय-विशेषकी सम्पत्ति अपवित्र हो जावेंगे और मूर्तियोंकी अतिशयता गायब हैं निरी मिथ्या और निराधार है और मन्दिरोंके उद्देश्यहो जायगी ऐसा घृणित पाप है जो जैन जातिको रसा- को भारी हानि पहुँचानेवाली है। तलमें पहुँचाये बिना न रहेगा । जैन जातिका ही क्यों, दूसरों के स्वाभाविक धर्माधिकारको हड़पना निःसवरन समूचे राष्ट्रका कोई भी अंग अपवित्र अथवा नीच न्देह महा नीचता है-घोर पाप है। वे आये [ले०-६० रतनचन्द जैन रतन' ] हिंसाकी ज्वालामें जीवन-धार लिये वे पाये । शरत् चंद्रिका-सा शीतल संसार लिये वे प्राय । ग्रीषमका था अंत आदि था वर्षा ऋतुका सुंदर। मंत्र अहिंसा गौरवमय दुनियाने सीखा जिनसे । सुरभित सा समीर करता था मुदित राजसीमंदिर॥ परहित निज बलिदान करें कैसे यह सीखा जिनसे॥ उषाका शुभनव-प्रभात जग-प्यार लिये वे आये। सुप्त हृदयमें जो जागृतिका बिगुल फूंकने भाये । हिंसाकी घालामें जीवनधार लिये वे आये ॥ हिंसाकी ज्वालामें जीवन-धार लिये वे आये ।। धन्य तुम्हारा अंचल त्रिशला जीवन ज्योति जगाता। ऋणी आज संसार अहो! जिनकी पावन कृतियोंका। वीर श्रेष्ठ उन महावीरसे यह संसार सुहाता ॥ नत-मस्तक होगया विश्वके सभी तीर्थ पतियोंका ॥ उमड़ पड़ा श्रानन्द वीर वाणी जब हम सुन पाये। जगके लिये जन्म हीसे उपकार लये आये । हिंसाकी ज्वालामें जीवन धार लिये वे आये ॥ हिंसाकी ज्वालामें जीवन धार लिये आये ।। वे सन्मति श्रीवीर आज फिर सुधाधार वर्षादें । वरसादें आनन्द मही पर अत्याचार बहादें ॥ पराधीन जगमें स्वतंत्रता सार लिये वे आये । हिंसाकी ज्वालामें जीवनधार लिये वे पाये ॥

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