________________
वर्ष २, किरण ११]
जैन और बौद्धधर्म एक नहीं
५६५
मिलिन्द-यदि आत्मा कोई वस्तु नहीं है, तो प्राप- कर रथ कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं। को कौन पिंडपात (भिक्षा) देता है, कौन उस भिदाका नागसेन-जिस प्रकार पहिये, धुरे, मादिके अति भक्षण करता है, कौन शीलकी रक्षा करता है, और कौन रिक्त रथका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, उसी तरह रूप, भावनाओंका चिन्तवन करनेवाला है ! तथा फिर तो वेदना, विज्ञान, संशा और संस्कार इन पांच स्कंधोंको अच्छ, बुरे कर्मों का कोई कर्ता और भोका भी न मा- छोड़कर नागसेन कोई अलग वस्तु नहीं है।" नना चाहिये। आदि।
_ 'विमुदिभग्ग' में भी निम्न श्लोकद्वारा उक्त भाव नागसेन–मैं यह नहीं कहता।
ही व्यक्त किया गया है:मिलिन्द-स्या रूप, वेदना, संशा, संस्कार और दुल्लमेव हिम कोचिएक्खितो। विज्ञान मिलकर नागसेन बने है!
कारको नविरिषा विज्जति । नागसेन नहीं।
अस्थि नियुक्तिम मिनुत्तो पुमा । मिलिन्द-क्या पांच स्कंधोंके अतिरिक्त कोई नाग- मम्गमाथि गमको नबिज्जति । सेन है ?
क्या कोई जैनधर्मका अभ्यासी उक्त मान्यताको नागसेन नहीं।
जैनधर्मकी मान्यता सिद्ध करनेका दावा कर सकता है! मिलिन्द तो फिर सामने दिखाई देने वाले नाग- यदि कोई कहे कि उक्त मान्यता बदकी मान्यता नहीं; सेन क्या है?
बुद्धने तो आत्माको 'अव्याकत' कहा है, या उसके नागसेन–महागज, आप यहाँ रथसे आये हैं, या विषयमें तृष्णी भाव रखा है तो हमके उत्तरमें हम कहंग पैदल चलकर ?
कि फिर भी बुद्धकी मान्यताको हम जन मान्यता कभी मिलिन्द-रथसे !
नहीं कह सकते। महावीरने श्रात्माकी कभी उपेक्षा नागसेन-आप यहाँ रथसे आये हैं तो मैं पछता नहीं की। बल्कि उन्होंने तो केकी चोटसे घोषणा की हूं कि रथ किसे कहते हैं ! क्या पहियाँको रथ कहते हैं ! कि “जे एगं बाबा से सम्बं जाणा" अर्थात् जो एक क्या धुरको रथ कहते हैं ? क्या रथमें लगे हुए इण्डोंको (आत्मा) को जानता है, वह सब कुछ जानता है, जो रथ कहते हैं ?
इस एक तत्वको नहीं जानता वह कुछ भी नहीं जानता । (मिलिन्दने इनका उत्तर नकारमें दिया) जिसतरह जैनशास्त्रों में 'अणु-गुरु-देह प्रमाण' आदि लक्ष
नागसेन तो क्या पहिये, धुरे, इण्डे आदिके गोंके साथ प्रात्माका विशद और विस्तृत वर्णन देग्यने में अलावा रथ अलग वस्तु है !
श्राता है क्या उस तरहका वर्णन ब्रह्मचारी जीने किसी (मिलिन्दने फिर नकार कहा)
बौद्ध ग्रन्थ देखा है ? यदि नहीं, तो उनका दोनों धर्मोनागसेन तो फिर जिस रथसे श्राप आये वह को एक बताना श्रात्मवंचन है, धर्म-व्यामोह है, विड. स्या है?
बना है और साथ ही जैन श्राचार्योकी अवमानना है । मिलिन्द-पहिये, धुरे, डण्डे श्रादि सबको मिला- जैन और बौद्ध धर्म में दूमरी बड़ी मारी विषमता कर व्यवहारसे रथ कहा जाता है। पहिये आदिको छोड़ यह है कि बौद्ध धर्ममें मांसभक्षणका प्रतिपादन ।