Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 695
________________ वर्ष २, किरण ११] वीर भगवानका वैज्ञानिक धर्म ६२६ सकती थी जब कि यह सब धर्म या इनमेंमे कोई भी रीतिसे असलियतकी खोज की जावे । यह ठीक है कि धर्म वस्तु स्वभावकी नींव पर उठाया गया होता, वह वैज्ञानिक खोजके द्वारा जो सिद्धान्त स्थापित होता है सब धर्म तो आँख मीचकर इस ही हौसले पर बने हैं उसमें भी शुरू शुरूमें मतभेद ज़रूर होता है, परन्तु उस कि धर्ममें हेतुप्रमाण वा तर्क-वितर्कको कुछ दखल ही मतभेदके कारण भापसमें लड़ाई हर्गिज़ नहीं होती है। नहीं है, तब यह लोग इस नेक सलाहको कैसे मान लड़ाई तो सब ही होती है जब किसी ईश्वर वा देवी सकते हैं और कैसे शारीरिक बलके द्वारा लड़ने मरने देवताका राज्य स्थापित करना होता है। पश्चिमीदेशोंमें को बन्द कर सकते हैं । वे तो जिस प्रकार देशी राजे पदार्थ विद्याकी खोज सैंकड़ों वर्षोंसे वैज्ञानिक रीतिसे अपना राज्य विस्तार करनेके वास्ते ज़बर्दस्ती दूसरे होती चली ना रही है, उस हीके फलस्वरूप ऐसे ऐसे राजाओंसे लड़ते हैं; इस ही प्रकार अपनं ईश्वरके राज्य प्राविकार होते चले जा रहे हैं जिनको सुनकर अच्छों विस्तारके वास्ते बराबर लड़ते रहेंगे, जब तक कि वस्तु अच्छोंको चकित होना पड़ता है,इनमें भी प्रत्येक नवीन स्वभावकी नींवपर स्थित कोई ऐसा धर्म नहीं बताया खोजमें शुरू शुरूमें बहुत मतभेद होता रहा है; परन्तु जायगा, जो डंकेकी चोट यह कहनेको नग्यार हो कि लड़ाई कभी नहीं हुई है। कारण यह है कि कोई माने हेतु और प्रमाणके द्वारा परीक्षा की कसोटी पर कसे या न माने और कोई कितना ही विरोध करे, इसमें बिना तो कोई भी धर्मकी बात मानने योग्य नहीं हो- नवीन बात खोज निकालने वालेका या उसकी बात सकती है। धर्म वह ही है जो वैज्ञानिक है अर्थात एक- मानने वालोंका क्या बिगड़ता है, उसे या उसकी नई मात्र वस्तुस्वभावपर ही स्थित है, वह ही वास्तविक खोजको माननेवालोंको कोई किसीका राज्य व हुकूमत धर्म है, वह ही कल्याणकारी और श्रात्मीक धर्म है। तो कायम करनी ही नहीं होती है, जिसके कारण उनधर्म किसीका राज्य नहीं है जिसके वास्ते लड़ने की ज़रूरत की नई खोजको मानने वाले राजद्रोही समझे जावें हो, किन्तु प्रारमाका निज-स्वभाव है। जिस विधि वि और उनसे लड़ाई करके जबर्दस्ती अपनी बात मनवानी धानसे प्रारमा शुद्ध होती हो और सुख शान्ति पाती हो पड़े। इस ही प्रकार वैज्ञानिक रीतिपे खोज होनमें भी बह ही विधि विधान ग्रहण करने के योग्य है । जो ग्रहण मतभेद होनेसे लड़ाई ठानने की कोई जरूरत नहीं पड़ती करेगा वह अपना कल्याण करलेगा, जो नहीं ग्रहण है। कोई माने या न माने इसमें किसी वस्तु स्वभावको करेगा वह स्वयं अपना ही नुकसान करेगा, इसमें लड़ने बताने वालेका क्या बिगाड़ तब वह क्यों लड़ाई मोल और खून खराबा करनेकी तो कोई बात ही नहीं है। ले और माथा फुटग्वल कर, लड़ाई तो किसीका राज्य, ___ वास्तवमें धर्मोकी लड़ाई तब ही तक है, जब तक हुकूमत या मिलकियत कायम करनेमें ही होती है जहाँ कि धर्मोके द्वारा कल्पित किये गये अपने२ ईश्वरका राज्य वा हुकमत वा मिलकियत कायम करनेका भदंगा राज्य जगत भरमें स्थापित करने की इच्छा लोगोंके दिलों नहीं वहाँ झगड़ा टंटा भी कुछ नहीं। में कायम है। ईश्वरके राज्यका कल्पितभूत सिरसे उतर यह सब बातें जान और पहचानकर वीर प्रभुने जाय, तो सब ही लड़ाई शान्त हो जाय । और यह तब जीवमात्रकी सुख शान्ति और कल्याणके लिये वस्तु ही हो सकता है जबकि वस्तु स्वभावके द्वारा वैज्ञानिक स्वभावको समझाया और प्रत्येक बातको वह लौकिक

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