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अनेकान्त
[अाश्विन, वीर-निर्वाण सं०२१५
है। जीवनचरित्र कलाके विश विद्वान पाठक मेरे इस बिना उसके इस चर्चा में आनन्द नहीं पा सकता । कई नम्र निवेदन पर कृपया ध्यान दें। -
सौ पन्ने आपने भगवानके पूर्व जन्मोंपर लिखे हैं। इससे किसी महापुरुषके जीवनचरित्रका जो गहरा प्रभाव महाराजका एक यही उद्देश्य समझमें आता है कि होता है वह उसके उपदेशका नहीं होता। कारण यह किस प्रकार भगवान्की आत्मा अनेक योनियोंमें भ्रमण है कि 'उपदेश' आचरणकी अंतिम सीढ़ी पर पहुँचकर करती हुई वीर्थकर कर्मको बांधकर अवतरी। बिना इस उस महापुरुषकी आवाज़ होती है, जिसके शन्द अटपटे, उद्देश्यको विचारमें लाये हुए कई सौ पन्नोंका पूर्वजन्मों भाव गंभीर और ध्वनिमें एक विलक्षण गाम्भीर्य्य होता पर लिखना बेकार दीखता है। परन्तु इस वर्णनमें यह है, जो सर्वसाधारणकी समझके परे की बात होती है। बात कहीं भी नहीं झलकती। उस ऊँचाई पर पहुँचना सर्वसाधारणको असम्भव जान भगवान् महावीरने ३१ वर्षकी आयु तक गार्हस्थ्यपड़ता है। परन्तु जीवनचरित्रमें यह बात नहीं होती, जीवन व्यतीत किया । श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुसार उसमें वह महापुरुष सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता दीखता है, भगवानने विवाह भी किया । उनके सन्तान भी थी। उसकी भल, उसका साहस, उसके जीवनका सारा जीवनचरित्रमें रागात्मिकता लाने के लिये नायकके साथ उतार चढ़ाव दृष्टिगोचर होता है, जिसमें पाठक अपना नायिकाका संयोग और वियोग सोने में सुहागा है। उसके समात्मिक सम्बन्ध अनुभव करता है। उस महापुरुषके अतिरिक्त भगवान महावीरके जीवन में एक और बड़ी जीवनके प्रत्येक उत्थानको देखता हुश्रा पाठक उसे विशेषता रही है, जिसकी कमीके कारण मनोविज्ञानी अंतिम छोर तक देख लेता है। फिर उस महापुरुषको दार्शनिक विद्वानोंने भगवान् बुद्धपर भी लाञ्छन लगाया उस ऊँचाई पर देखकर पाठकके मुंहसे निकलती है है। वह विशेषता भगवान्का दिनके समयमें अपनी स्त्री, "वाह वाह वाह ।" जीवनचरित्रको पढ़कर ही सर्वसाधा- भाई बन्धु श्रादिकी रजामन्दीसे सारी प्रजाके सामने रणको एक महापुरुषके उपदेश और उसकी लीलाओंमें दीक्षा लेना है, जबकि भगववान् बुद्ध रात्रिके समय स्वाभाविकता झलकती है, तभी महापुरुषकी ऊँचाईका सोते हुए परिवारजनोंको छोड़कर भाग निकले थे । इतने कुछ अन्दाज़ा लग पाता है। उसी समय उस महापुरुष रागात्मिक मसालेके साथ कैसा रूखा जीवनचरित्र लिखा का उपदेश अक्षर २ समझमें श्राता है।
गया है। एक भी मार्मिक स्थल कुत्रा नहीं गया। ___महाराजजीने लगभग ७०० पन्नोंमें यह जीवन- तुलसीदासने रामचरित्र मानस लिखा है । रामजी उपदेश चरित्र लिखा है। शुरूमें काफी बड़ी भूमिका दी है। देते कहीं भी नहीं दीख पड़ते । परन्तु सारे उपनिषदोंके इसमें जैनधर्मके अनुसार कालचक्रपर अच्छा प्रकाश उपदेशके निचोड़से गोस्वामीने एक ऐसे आदर्श मानवडाला है। परन्तु कुछ अनावश्यक भाग हटाकर उसके चरित्रका चित्र खींचा है जिसकी सुंदरता पर सारा संसार स्थानपर आवागमन और कर्मबन्धनके सिद्धान्तों पर मुग्ध है। प्रत्येक मार्मिक स्थलपर गोस्वामीजीने अपनी थोड़ासा प्रकाश डालना और आवश्यक था; क्योंकि भावुकताका परिचय दिया, जिसके कारण प्राज रामइसके बाद महाराजने भगवान्के अनेक पूर्वजन्मोंकी चरित्र-मानस अमर होगया, रामजीका जीवन एक चर्चा की। आवागमनके सिद्धान्तको न माननेवालोको मर्यादा-पुरुषोत्तमका जीवन बन गया।