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अनेकान्त
हो या आध्यात्मिक, वैज्ञानिक रीतिसे जांच पड़तालकर वस्तु स्वभावके अनुसार ही माननेका उपदेश दिया, बिना परीक्षा किये आँख मीचकर ही किसी बातके मान लेने को तो आँखें होते हुए भी स्वयं अंधा होकर गढ़में गिरना और बेमौत मरना बताया। वीर प्रभुने समझाया कि चाहे जिस चीजको जाँचकर देखो संसारकी कोई भी वस्तु नाश नहीं होती है और न नवीन पैदा ही होती है । अवस्था ज़रूर बदलती रहती है, इस ही से नवीन वस्तुकी उत्पति और वस्तुओंोंकी नास्ति, प्रभाव दिखाई देता है। जिस प्रकार सोनेका कड़ा लगाकर हार बनानेसे, कड़ेका नाश और हारकी उत्पत्ति होगई है परन्तु सोनेका न नाश हुआ है न उत्पत्ति, वह ज्योंका त्यों मौजूद है, केवल अवस्थाकी तबदीली ज़रूर होगई है। इसी प्रकार लकड़ी के जलजाने पर, लकड़ीके कण कोयला, राख, धुत्रां आदि रूपमें बदल जाते हैं, नाश तो एक कणका भी नहीं होता है और न नवीन पैदा ही होता है। ऐसा ही चाहे जिस वस्तुको जांच कर देखा जाय, सबका यही हाल है । जिससे स्पष्ट सिद्ध है कि यह सारा संसार सदासे है और सदा तक रहेगा; इसमें कुछ भी कमीबेशी नहीं होती है और न हो सकती है; अवस्था ज़रूर बदलती रहती है, उस ही से नवीनता नज़र श्राती है । ईश्वरके माननेवालों की भी कमसे कम ईश्वरको तो श्रनादि अनन्त जरूर ही मानना पड़ता है, जिसको किसीने नहीं बनाया है और न कोई उसका नाश ही कर सकता है, इस प्रकार ईश्वरको या संसारको किसी न किसी को तो अनादि मानना ही पड़ता है, जो कभी न बना हो और न कोई उसका बनाने वाला ही हो, इन दोनोंमें ईश्वर तो कहीं दिखाई नहीं देता है उसकी तो मनघड़ंत कल्पना करनी पड़ती है और संसार साक्षात विद्यमान
[ भाद्रपद, वीरनिर्वाण सं० २४६५
है, जिसकी किसी भी वस्तुका कभी नाश नहीं होता है, और न नवीन ही पैदा होती है, जिसका अनादिसे अवस्था बदलते रहना ही सिद्ध होता है, तब मनघड़ंत कल्पित ईश्वरको न मानकर संसारको ही अनादि मानना सत्य प्रतीत होता है ।
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अवस्था बदलने की भी वैज्ञानिक रीतिसे जाँच करनेपर संसारमें दो प्रकारकी वस्तुयें मिलती हैं; एक जीव - जिसमें ज्ञानशक्ति है; और दूसरी अजीव - जो ज्ञानशून्य है । जीव कभी श्रजीव नहीं हो सकता और जीव कभी जीव नहीं हो सकता, यह बात अच्छी तरह जांच करनेसे साफ सिद्ध हो जाती है; जिससे यह ही मानना सत्यता है कि जीव और जीव यह दो प्रकारके पृथक् पृथक् पदार्थ ही सदासे हैं और सदातक रहेंगे। जीव अनेक हैं और सब जुदे जुड़े यह सब जीव सदासे हैं और सदातक रहेंगे ? अवस्था इनकी भी बदलती रहती है परन्तु जीवोंका नाश कभी नहीं होता है । अजीव पदार्थोंमें से ईंट पत्थर हवा पानी आदि जो अनेक रूप नज़र आते हैं और पुद्गल कहलाते हैं, वे सब भी अनेक अवस्था रूप अलट पलट होते रहते हैं। कभी ईंट, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी लोहा, चाँदी आदि ठोस रूपमें, कभी तेल पानी व दूध, घी आदि बहनेवाली शक्ल में, कभी हवा, गैस आदि आकाश में उड़ती फिरनेवाली हालत में, और कभी जलती हुई यागके रूपमें, एक ही वस्तु इन सब ही हालतों में अदलती बदलती रहती है, यह बात अनेक वस्तुओं पर जरासा भी ध्यान देनेसे स्पष्ट मालूम हो जाती है ।
इसके अलावा यह पुद्गल पदार्थ अन्य भी अनेक प्रकारका रूप पलटते हैं; एक ही खेतमें आम, इमली, अमरूद, अनार, अंगूर, नारंगी आदि अनेक प्रकारके बीजोंके द्वारा एक ही प्रकारकी मिट्टी पानी और हवाका