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ॐ अहम्
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India नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्त्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ : सम्पादन-स्थान-वीर-सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा, जि. सहारनपुर । वर्ष २ प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० ब० न० ४८, न्यू देहली
किरगा १२ ___ अाश्विन, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १९६६
समन्तभद्र-जयघोष सरस्वती-स्वैर-विहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः । जयन्ति वाग्वज्र-निपात-पाटित-प्रतीपराद्धान्त-महीध्रकोटयः ।।
-गधचिन्तामणी, वादीसिंहाचार्यः वे प्रधान मुनीश्वर स्वामी समन्तभद्र जयवन्त हैं-सदा ही जयशील हैं, अपने पाठकों तथा अनुचिन्तकोंके अन्तःकरण पर अपना सिक्का जमानेवाले हैं-,जो सरस्वतीकी स्वच्छन्दविहारभूमि थे-जिनके हृदयमन्दिरमें सरस्वतीदेवी बिना किसी रोक-टोककं पूरी आजादीके साथ विचारती थी,
और इसलिये जो असाधारण विद्याके धनी थे और उनमें कवित्व-वाग्मित्वादि शक्तियाँ उच्चकोटि के विकासको प्राप्त हुई थीं और जिनके वचनरूपी वनके निपातसे प्रतिपक्षी सिद्धान्तरूपी पर्वतोंकी चोटियाँ खण्ड खण्ड होगई थीं-अर्थात समन्तभद्रके आगे बड़े बड़े प्रतिपक्षी सिद्धान्तोंका प्रायः कुछ भी गौरव नहीं रहा था और न उनके प्रतिपादक प्रतिवादी जन ऊँचा मुँह करके ही सामने खड़े होसकते थे।
समन्तभद्र-विनिवेदन समन्तभद्रादिमहाकवीश्वराः कुवादिविद्याजयलब्धकीर्तयः। सुतर्कशास्त्रामृतसारसागरा मयि प्रसीदन्तु कवित्वकाक्षिणि ॥
-वरांगचरित्रे, श्रीवर्द्धमानसूरिः