Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 702
________________ ६३६ अनेकान्त [भाद्रपद, वीरनिर्वाण सं०२४६५ बायगी। बाकी हमें करना ही क्या है। कि मैं एक कंगालके घर फकीरोंकी तरह विवाह _ इस प्रकार सुखदेवने यह निश्चय कर लिया करूँ । विशालचन्द्र यह सुनकर चुप हो रहे। कि मैं अब रिश्ता वहीं करूँगा उन्होंने मोहनको बुलाया । मोहनने पूछा-कहिये, आपकी क्या अाज विशालचन्द्रकी शादीका दिन है । सारा सलाह रही। शहर बाजेकी ध्वनिसे गूंज रहा था । कहीं गाने - सुखदेव-बस भाई मोहन ! मैंने निश्चय कर वालोंकी मंडली थी तो कहीं उपदेशकों की भीड़ लिया है कि प्यारेलालके यहाँ ही रिश्ता करूंगा। थी। मोहन-आखिर आप इतना रुपया कहाँसे लाएँ. प्यारेलाल वेश्या अथवा अश्लील नाटक नहीं लेगये थे बल्कि बाहरसे बड़े बड़े विद्वान पण्डित ___ मुखदेव-बेटा ! यह मकान बेचदूगा और बुलवाए जिन्होंने प्रभावशाली भाषण दिये; कुछ रुपया कर्ज लेलूंगा । फिर शादीके बाद नौकरी जिससे बहुतसे मनुष्योंने सिगरेट पीना, तमाख्नु करके अदा कर दूंगा। खाना छोड़ा तथा वसन्ततिलकाके मोहमें पड़कर __ मोहनने अटल निश्चय देखकर हाँ में हाँ चारुदत्तकी क्या दशा हुई इसका नाटक दिखाया मिलाई और सगाईकी रस्म करदी। गया जिससे वेश्यासे घृणा उत्पन्न हुई। * * सखदेवने भी बरातियोंकी खातिरमें कोई कमी मोहनने अपने एक मित्र द्वारा विशालचन्द्रको न रक्खी । आखिर; विदाका दिन आया, पलंग यह ज्ञात करा दिया था कि तुम्हारे श्वसुरकी ऐसी पर लड़का बैठाया गया। जब सब कार्य हो चुका स्थिति है और किस प्रकार शादीमें रुपया लगाएँगे। तो वरसे कहा कि उठो; लेकिन न तो वे उठे ही विशालचन्द्र यह मालूम करके अत्यन्त दुखित और न कुछ उत्तर ही दिया । विशाल चन्द्रक न हुए। उन्होंने पितासे प्रार्थना पूर्वक कहा-पिताजी उठने पर लोगोंने समझा कि कुछ और लेना लाला सुखदेवकी आर्थिक स्थिति बहुत स्वराब है। चाहते होंगे। यह सोचकर कहने लगे कि जो कुछ उन्होंने अपना मकान बेचकर तथा कर्ज लेकर चाहिये कहें, वही हाज़िर है। परन्तु उन्होंने इसपर विवाहमें देना निश्चित किया है । कृपा कर आप भी कुछ उत्तर नहीं दिया। उनसे इतना रुपया न लीजिये। मेरे और तीन भाई जब प्यारेलालको यह मालूम हुआ कि लड़का हैं, उनके विवाहमें जो चाहें लेलें । बेचारे बीमारसे उठना नहीं तो वे स्वयं वहाँ गए और कहारहते हैं, उम्र भर नौकरी करेंगे तब कहीं कर्ज़ बेटा ! चलो समय हो गया है फिर रात हो जायगी। उतरेगा। तब विशालचन्द्र बोले-पिताजी ! मैं अब कैसे पिताने कहा-तुम यह क्या कहते हो, अगर जासकता हूँ मैं तो पाँच हजारमें बिक चुका हूँ। उनके पास रुपया नहीं था तो कहीं गरीबके घर आप अपनी पुत्रवधू को ले जाइये, मैं तो अब रिश्ता करना उचित था । यह मेरी शानके बाहर है जैसा ये (सुखदेवकी ओर संकेत करके ) कहेंगे

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