Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 666
________________ जान तत्वचची मनुष्योंमें उच्चता-नीचता क्यों ? [ले० पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य] weeper Beton गोत्रका उच्च अथवा नीचरूपसे व्यवहार नारकी, आलोचनात्मक पद्धतिसे किये गये समाधानरूप - तिर्यच, मनुष्य और देव इन सभीमें यथा- कथनको अपनी ओरमे हिन्दी अर्थ करते हुए ज्योंका योग्य बतलाया है। साथ ही सिद्धान्त ग्रंथोंमें यह त्यों उद्धृत किया है । यद्यपि उस समय जिन लो. भी स्पष्ट किया है कि नारकी और तिर्यच नीच गोंके मनमें यह शंका थी कि “उच्चगोत्रका व्यवहार गोत्री ही होते हैं, देव उच्च गोत्री ही होते हैं और या व्यापार कहां होना चाहिये" संभव है उनकी मनुष्य उच्च तथा नीच दोनों गोत्र वाले यथा इस शंकाका समाधान धवल ग्रंथके उस वर्णनसे योग्य हुमा करते हैं। हो गया होगा, परन्तु मुख्तार साहबकी मान्यताके __ गोत्रकी उच्चता क्या और नीचता क्या ? अनुसार यह निश्चित है कि धवलग्रंथके समाधानायही आज विवादका विषय बना हुआ है। आज त्मक वाक्यकी विशद व्याख्या हुए बिना आजका ही नहीं, अतीतमें भी हमारे पूर्वजोंके सामने यह विवाद समाप्त नहीं हो सकता है। समस्या खड़ी हुई थी और उस समयके विद्वानोंने उच्चता और नीचताके विषयमें जो विवाद है इसके हल करनेका प्रयत्न भी किया था; जैसा कि उसका मूल कारण यह है कि सिद्धान्त ग्रंथों में श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तारके 'अनेकान्त' यद्यपि मनुष्यों के दोनों गोत्रोंका व्यापार बतलाया की गत दूसरी किरणमें प्रकाशित "उच्च गोत्रका है परंतु कौन मनुष्यको उच्च गोत्री और कौन व्यवहार कहाँ ?" शीर्षक लेखसे ध्वनित होता है। मनुष्यको नीच गोत्री माना जाय तथा ऐसा क्यों श्रीयुत मुख्तार साल्ने इस लेखमें धवलपथके माना जाय ? इसका स्पष्ट विवेचन देखने में नहीं उच्चगोत्र कर्मके विषयमें उठाई गयी आपत्ति और पाना है । यद्यपि जिस मनुष्यके उच्च गोत्र कर्मका

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