Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 680
________________ अनेकान्त [भाद्रपद, वीर-निर्वाण सं० २४६५ %3D णापर-पच्चा तह वारिमंच मगहाए संवृत्तं । जगसुन्दरीके 'उक्तंच' आदि आधारभूत उल्लेख मागुत्तरेख पीयं पक्षासणं गहंवि-रोपस्स nem -"विस-वेषण-रत्तक्खय-भय-वाही-संकिलेसेहिं । जब-(ब) विद्य-मज्वं कवित्व सुरहास्वापरा-सहि उसासा-शारा जिरोहणं (दो) विज्जदे माळ।" रस-भरे पीयं खासइ गहणी स पइसारे ॥५॥ -परिभाषाप्रकरण, गाथा ३० इस जगसुन्दरीपयोगमाखाए मुणिजसवित्तिविरइए गह- २--"यदुक्तं--भोजनीय माहिषदधि, ग्रहणी-विकारे वीपसमणो णाम पंचमो-हिवारो सम्मत्तो। भक्तं मुग्दरसंच । अपर-वटिकायां रोगिणं बहुभिर्वस्त्रैः इस अधिकारमें आदि की दो गाथाओं-द्वारा रोगका प्रच्छाया (दयेत् ), यावत्प्रस्वेदं निर्गच्छति "गात्रे निदान अवस्थाभेद और उपचारका कथन किया है और तदुत्यच्छायत्ततः (१) नो चंद (चेत्) भद्रकं भवति अन्त की ३ गाथाओंमें ग्रहणीनाशक तीन प्रयोग दिये तु (त्रि) दोषवटिका-" है, वे इस प्रकारहै - -पलितहरणाधिकारे, पत्र ४३ __ योग १-चित्रक, अजमोद, बेलगिरी, सोंठ, अना- ३-"वीशलेनोक्तं पारद मासा १ ताम्र प (पा) रदाने, जव (या इन्द्रजव) (सबसम भाग) इनका एकत्र ज्यां मण्डूकपर्णीरसेन अतिकैका दिनमेकपर्यन्तं, ततः खलुश्र ( काढ़ा !) पीनेसे संग्रहणी नास होती है। केशराजरसेन, (ततः) तित्तिरंडारसेन, ततो मुद्ग-प्रमाण योग २-सोठ १ भा० हरड २ भा०, अनारदाना वटिका कार्या ज्वरे सनिपातादौ पूर्वोपचारेण सप्ताहमेकं ३ भा० पीपल ४ भाग-सबको चूर्ण करके सेवन करने पिवेत् । चक्षुः शूल विस्फोटक कृतानि वर्जयित्वा सर्वन्यासे संग्रहणी शांत होती है। धीनुपशामयति।" ___ योग ३-जामुनकी, श्रामकी, और बेलकी मजा -पलितहरणधिकार, पत्र ४५ (गिरी या गदा), कैथ (कवीठ), देवदारू, सौंठ, सम- ४--"सिंह-प्रसेणमवदी सिंहो जांबवतो हतः। भाग चूरण करके चांवलके मांडसे पीनेसे अतिसार सुकुमार-कुमारो दी तब द्वेष समंतक, । ७५-७८१ इति (दस्त) और संग्रहणी नाश होती है । मह पणमिळण सिरसा मुणिसुम्वय-तित्यणाह-पय-जुमलं प्रोफेसर ए० एन० उपाध्यायकी प्रतिमें इस बोच्छामि बाजतंतं रावण रइयं समासेण ॥॥" अधिकारकी गाथाएँ ६ दी हैं। यहाँ स्थी गाथाका -बालरोगधिकारका मध्य भाग जो उत्तरा दिया है वह उसमें रवीं गाथाका उत्तरार्ध है ५-"एवंभूततत्तयर संखितं भासियं मए एत्य और यहाँ जो गाथा श्वें नं. पर दी है वह उसमें छठी वित्थरदो जायन्यो सुग्गीवमए अहव जामिणी हि पण७३ गाथा है। यी गाथाका उत्तरार्ध और चींका पूर्वार्ध महसय अच्छरियाभो महम्म-महरयण-पाहुवरामो क्रमशः उसमें निम्न प्रकार दिये हैं-- सुहमणयहदभंगिय विसुद्धभूपत्थसत्याभो ॥७॥ बडागुडेण वडया विजइ गहणीविणासेह। मुणिजणणमंसियाभो कहि पि गाउण विंदु-सय-भायं हिंगुसोपवलं सुंठी पचा तह विडंगचण्णसंजतं । वोच्छामि किंपि पयको निणवयनमहा समुहामो ॥७॥ इन गाथानों के पाठमें और भी कुछ साधारण-सा .... -शाकिन्यधिकारमें, ज्वालामालिनी-स्तोत्रके बाद भेद। यह माथा गोम्मट-कर्मकांडकी।

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