Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 688
________________ श्री बी० एल० सराफ एडवोकेटकी श्रद्धाञ्जलि [वीरवासन-जयंतीके अवसर पर मेरे निमंत्रणको पाकर श्री बी० एल० जी सराफ एडवोकेट सागर (मंत्री मध्यप्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन)ने वीरशासनादिके सम्बन्धमें जो अपना श्रद्धाञ्जलिमय पत्र भेजा है वह अनेकान्तके पाठकोंके जानने के लिये नीचे प्रकट किया जाता है। इससे पाठकोंको मालूम होगा कि हमारे सहृदय मजैन बन्धु भी भाजकल वीरशासनके प्रचारकी कितनी अधिक मावश्यकता महसूस कर रहे हैं और इससे जैनियोंकी कितनी अधिक ज़िम्मेदारी उसे शीघ्र ही अधिकाधिकरूपसे प्रचारमें खानेकी हो जाती है । आशा है जैन समाजके नेताभोंका ध्यान इस मोर जायगा और वे शीघ्र ही वीरशासनके सर्वत्र प्रचारके लिये उसके साहित्यमादिको विश्वव्यापी बनानेकी कोई ठोस योजना तय्यार करके उसे कार्य में परिणत करना अपना पहला कर्तव्य समझेगे । वर्तमानमें वीरशासनके प्रचारकी जितनी अधिक आवश्यकता है उतनी ही उसके लिये समयकी अनुकूलता भी है। क्षेत्र बहुत कुछ तय्यार है, अतः जैनियोंको संकोच तथा अनुदार भाव को छोड़कर भागे भाना चाहिये और अपने कर्तव्यको शीघ्र पूरा करके श्रेयका भागी बनना चाहिये । वह पत्र इस प्रकार है सम्पादक] पूज्य मुख्तारजी, आपका निमन्त्रण प्राप्त हुआ, आपके सौजन्यके लिये मेरा हृदय श्राभारावनत है । जो अमृतवर्षण भगवान महावीरने वीरशासन जयन्तीके दिन शुरू किया था वह आजके हथि यारबन्द रक्तपिपासु युगमें और भी अधिक आवश्यक हो गया है। अहिंसा तथा अनेकान्तके सिद्धान्त द्वारा जिस विश्वशान्ति तथा विचार-समन्वयका सन्देश भगवान महावीरने भेजा, वह विश्वशान्ति तथा ( विचारोंका ) पारस्परिक आदान-प्रदान आज भी हर विचारवान हृदयकी लिप्सा है। तोपोंकी गडगडाहटसे, पारस्परिक अविश्वाससे, अत्यन्त शंकित जीवनयापनस, सोतेमें एकदम चौंककर उठा वाले प्रशान्त जीवनसे, विश्वास तथा अबाध पारस्परिक शान्तिके साम्राज्यमें लेजानेके लिये वीरशासनकी बहुत आवश्यकता है। कर्मके पूर्व विचारका आगमन नैसर्गिक है। विचार धाराको शक्तिमती बनाना किन्तु पहले ज्ञानबाहिनी बनानाभी बहत आवश्यक है। विश्वपिपास है, तथा मृषा होनेके बाद रणक्षेत्र में भी अवतीर्ण हो सकता है, विश्व बाधाओंसे सफलता पूर्वक संतरित होनेके लिये । किन्तु वह ऐसे निसर्ग-सारल्यजनित विश्वासविधिद्वारा प्रेरित हो कि उसको सीधा जीवनमें उतारा जासके। भगवानके ज्ञानके विश्वविस्तारके लिये और कौन अच्छी तिथि चुनी जा सकती है ? सरसावा नेकी मेरी इच्छा है। इस बार बहुतसी बाधाएँ थीं; देखें कब सौभाग्य प्राप्त होता है। आश्रमके वातावरणमें पूर्व ऋषियोंकी ज्ञानोद्रेकी सरलता देखना हर एकको सौभाग्यकी वस्तु होगी । वह एक स्थान होगा जहासे हम भगवान महावीरके सिद्धान्तोंका सरलतासे पानकर अपनेको पवित्र बना सकेंगे और विश्वको वही संदेश सुनानेको सशक्त बना सकेंगे। मुझे विश्वास है कि आपका शुभप्रयास आशातीत साफल्य प्राप्त करेगा। अडचनोंके कारण व्यन रहनेसे कुछ ज्ञानयोगी श्रद्धाञ्जलि अर्पित न कर सका । कुछ समय बाद प्रयत्न करूंगा । फिलहालके लिये परिस्थिति देखते हुए क्षमा-प्रार्थी हूँ। विनयावनत बी. एल. सराफ़

Loading...

Page Navigation
1 ... 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759