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अनेकान्त
[भाद्रपद, वीर-निर्वाण सं० २०६५
इसमें उच्चगोत्रकर्मके उल्लिखित लक्षणको १-साधु शब्द यहाँ पर स्पष्ट लिखा हुआ है। असंभवित और श्रव्याप्त बतलाया गया है, अव्याप्त २-क्रमिक लेखमें ब्राह्मणके बाद शूद्रका उल्लेख इस लिये बतलाया गया है कि वह लक्षण उच्च ठीक नहीं जान पड़ता, यदि ग्रन्थकारको शूद्र शब्द गोत्रवाले वैश्य ब्राह्मण और साधुओंमें नहीं प्रवृत्त अभीष्ट होता, तो वे 'शूद-विद्माह्मणेषु' या 'ब्राह्मण होता है । क्योंकि वैश्य और ब्राह्मणोंके कुल क्षत्रिय विशूद्रेषु' ऐसा उल्लेख करते। कुलोंसे भिन्न हैं तथा साधका कोई कुल ही नहीं ३-व्याकरणकी दृष्टि से भी 'विद् ब्राह्मण शूदेषु' होता है, उसके साधु होनेके पहिलेके कुलकी यह पाठ उचित नहीं जान पड़ता है। अपेक्षा भी नष्ट हो जाती है, यही कारण है कि ४-कर्मभूमिज मनुष्योंमें साधु भी शामिल हैं कुलोंकी वास्तविक सत्ता धवलके कर्त्ताने नहीं तथा वे उच्च गोत्री है इसलिये उनका संग्रह करने स्वीकार की है।
__ के लिये 'साधु' शब्दका पाठ आवश्यक है । यद्यपि धवल ग्रन्थके इम उद्धरणसे यह साफ तौर यह कहा जासकता है कि "यहां पर कर्मभूमिज पर मालम पड़ता है कि ग्रंथकार कर्मभूमिज मनुष्य मनुष्योंका ही ग्रहण है" इसमें क्या प्रमाण हैं ? में वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्म ग और साधुओंमें ही उच्च इसके उत्तरमें यह कहा जासकता है कि हतु परकगोत्र स्वीकार करते हैं, शूद्रोंमें नहीं । इससे यह वाक्यमें ग्रंथकारने उच्चगोत्री देव और भोगतात्पर्य निकालना कठिन नहीं है कि "नीच गोत्री भूमिज मनुष्योंका संग्रह नहीं किया है। कर्मभूमिज मनुष्य शूद्रोंकी श्रेणीमें पहुँचते हैं।" इस प्रकार यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि
यद्यपि मुख्तार सा० ने 'साधु' शब्दके स्थान सम्मूछन और अन्तर्वीपज मनुष्योंकी तरह पांच पर 'शूद्र' शब्द रखनेका प्रयत्न किया है परन्तु वहाँ म्लेच्छखंडोंमें रहने वाले म्लेच्छ और कोई कोई पर शूद्र शब्द कई दृष्टियोंसे संगत नहीं होता है। कर्मभूमिज मनुष्य भी नीच गोत्री होते हैं इसलिये वे दृष्टियां ये हैं
बाबू सूरजभानुजी वकीलका यह सिद्धान्त कि
. 'सभी मनुष्य उच्चगोत्री हैं-' आगमप्रमाणसे प्रकरणवश यहां पर यह भी उल्झेख कर देना। उचित है कि मुख्तार सा. "मार्यप्रत्ययाभिधान बाधित होनेके कारण मान्यताकी कोटिसे बाहिर व्यवहार निबन्धनानां पुरुषाणां संतानः उच्चैर्गोंत्रिम्" है । लेख लंबा हो जानेके सबबसे यहीं पर समाप्त इसके अर्थमें स्पष्टता नहीं ला सके हैं । इसका स्पष्ट किया जाता है । गोत्र क्या ? उसकी उच्चता-नीचता अर्थ यह है कि-'आर्य' इस प्रकारके ज्ञान और 'पाय'
क्या ? तथा उसका व्यवहार किस ढंगसे करना इस प्रकारके शब्द प्रयोगमें कारणभूत पुरुषोंकी संतान
उचित है ? आदि बातों पर आगेके लेख द्वारा उमगोत्र है। इसका विशद विवेचन भी भागेके लेखमें किया जायगा।
प्रकाश डाला जायगा । इति शम्