________________
५६२
अनेकान्त
[भाद्रपद, वीर-निर्वाण सं०२४६५
श्रीमूलसंघरूपी आकाशमें जो चन्द्रमाके समान हुए हैं, भारतदेशमें आगेको तीर्थकर होनेवाले हैं और जिन्हें 'चारण' ऋद्धिकी प्राप्ति थी-तपके प्रभावसे आकाशमें चलनेकी ऐसी शक्ति उपलब्ध हो गई थी जिसके कारण वे, दूसरे जीवोंको बाधा न पहुंचाते हुए, शीघ्रताके साथ सैंकड़ों कोस चले जाते थे वे 'समन्तभद्र' नामके मुनि जयवन्त हों-उनका प्रभाव हमारे हृदय पर अंकित हो।
कुवादिनः स्वकान्तानां निकटे परुषोक्तयः। समन्तभद्र-यत्यने पाहि पाहीति सूक्तयः॥
-अनंकारचिन्तामणौ, अजितसेनाचार्यः (समन्तभद्र-कालमें ) प्रायः कुवादीजन अपनी स्त्रियोंके सामने तो कठोरभाषण किया करते थेउन्हें अपनी गर्वोक्तियां अथवा बहादुरीके गीत सुनाते थे-परन्तु जब समन्तभद्र यतिके सामने आते थे तो मधुरभाषी बन जाते थे और उन्हें 'पाहि पाहि'-रक्षा करो रक्षा करो, अथवा आप ही हमारे रक्षक है-ऐसे सुन्दर मृदुवचन ही कहते बनता था—यह सब स्वामी समन्तभद्र के असाधारण व्यक्तित्वका प्रभाव था।
श्रीमत्समन्तभद्राख्ये महावादिनि चागते । कुवादिनोऽलिखन्ममिमंगुष्ठैरानतामनाः॥
-अकारचिन्तामसी, अनितसेनः जब महावादी समन्तभद्र (सभास्थान आदिमें) आते थे तो कुवादिजन वीचा मुख करके अंगठोंसे पृथ्वी कुरेदने लगते थे अर्थात् उन लोगों पर-प्रतिवादियों पर-समन्तभद्रका इतना प्रभाव पड़ता था कि वे उन्हें देखते ही विषण्ण-वदन हो जाते और किंकर्तव्यविमूढ़ बन जाते थे।
* भवटुतटमटति झटिति स्फुटपटुवाचाटधूर्जटेजिंहा।। वादिनि समन्तभद्रे स्थितवति का कथाऽन्येषाम् ॥
__-अलंकारचिन्तामणी, विक्रान्तकौरवे च वादी समन्तभद्रकी उपस्थितिमें, चतुराईके साथ स्पष्ट शीघ्र और बहुत बोलनेवाले धूर्जटिकीतमामक महाप्रतिवादी विद्वानकी-जिहा ही जब शीघ्र अपने बिलमें घुस जाती है-उसे कुछ बोल नहीं भाता-तो फिर दूसरे विद्वानोंकी तो कथा ही क्या है ? उनका अस्तित्व तो समन्तभद्र के सामने कुछ भीम
यह पच शकसंवत् १०१० में उत्कीर्ण हुए अवयवेल्गोजके सिखानेख मं०१४ (६७) में भी थोडेसे परिवर्तनके साथ पाया जाता है। वहाँ 'धूर्जटेर्जिह्वा के स्थान पर 'धूर्जटेरपि जिह्वा' और 'सति का कथाऽन्येषा' की जगह 'तव सदसि भूप कास्थाऽन्येषा' पाठ दिया है, और इसे समन्तमबके बादारंभ-समारंभसमयकी उक्तियों में शामिल किया है। पथके उस रूपमें धर्जटिके निहत्तर होने पर अथवा धबंटिकी गहतर पराजयका उझेख करके राजासे पूछा गया है कि पूर्जटि जैसे विद्वान्की ऐसी हालत होनेपर अब भापकी समाके दूसरे विद्वानोंकी क्या मास्था है? क्या उनमेंसे कोई वादकरनेकी हिम्मत रखता है?
ETIT यामपनहा रखता।