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वर्ष २, किरण १०]
वीर-शासनका महत्व
सिंहकी पर्याय उन्होंने मतोंको पाला और उसके धर्मका उत्कृष्ट रूपसे पालन कर सकता है- इतनी
आत्मशुद्धता प्राप्त कर सकता है कि अन्तमें अन्तर बाह्य समस्त परिग्रहका त्याग कर केवल ज्ञानको प्राप्त कर लेवे।
फलस्वरूप स्वर्गमें जाकर देव हुए।
यमपाल चांडालने मात्र एक देश अहिंसांवत पालन करनेसे देवों द्वारा आदर-सत्कार पाया ।
नीच बीच मनुष्यके उत्थान में सहायक होना ही areeroeा महत्व है। यह पतितोद्धारक है, जगत् हितकारी है और साक्षात् कल्याणरूप है । इस ही कारण यह धर्म समस्त प्राथियोंके लिये हिनरूप होनेसे "सर्वेभ्यो हितः सार्व" इस सावें, विशेषणसे विशिष्ट 'सार्वधर्म' कहलाता है और इसीसे स्वामी समन्तभङ्गने इमे 'सर्वोदय तीर्थ' जिया है संसारी प्राणियोंको चाहिए कि वे वीरशासनकी छत्र-छायाके नीचे आएँ, ग्रहस्थधर्मका यथार्थ रीतिसे पालन करते हुए अपने जन्मको सफल करें और परंपरा स्वाधीन मुक्ति पदको
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प्रान करें ।
मीर भगवानका उपासक एक सच्चा जैन गृहस्थ न्याय पूर्वक धनोपार्जन करता है, मृदुभाषी होता है, सम्पचादि से संपन्न होता है, धर्म-अर्थ-काम इन तीनों पुरुषार्थीका एक दूसरेका विरोध न करते हुए समीचीन रौतिसे साधन करता है, योग्य स्थानमें रहता है, समाधान होता है, योग्य आहार-विहार करता है। विद्वान् जितेन्द्रिय परोपकारी, दयावान तथा पाप भयभीत होता है और सत्संगति उसको प्रिय होती है। इस तरह एक सद्द्महस्य महस्थ में रहते हुए भी अपने
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इस प्रकार वीर भगवान्का जिनधर्म कठिन नहीं है। जो धर्मके मर्मज्ञ हैं वे धर्मका पालन करके अपना कल्याण करते ही हैं । धर्म-पालनमें खेद नहीं, श नहीं अपमान नहीं, भय नहीं, विचार नहीं, काह नहीं और शोक नहीं दीरका धर्म समस्त विसंवादों तथा ।
झगड़ोंसे रहित है । वस्तुतः इसके पालन करनेमें कोई परिश्रम नहीं है। यह धर्म अत्यन्त सुगम है, समस्त शेख रहित स्वाधीन चात्माका ही तो सत्यपरिमन है। इसका फल समस्त संसार परिभ्रमणसे छूटकर अनंत दर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्त सुख और और अनन्त वीर्य मय सिद्ध अवस्था अर्थात् परमात्मपदकी प्राप्ति है और परमात्मपकी प्राप्ति ही आमो अनिकी चरम सीमा है ।
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* इन लेखकी लेखिका बा० उसमेन मी जैन एम० एएलएल० बी० रोहनककी सुपुत्री है और एक अच्छी होनहार लेखिका जान पड़ती है। आपका यह लेख वीरमेवामन्दिरमै वीरशामन जयन्ती उत्सव पर पढ़ा गया है।
-सम्पादक