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अनेकान्त
[प्रथम श्रावण,वीर-निर्वाण सं०२४६५
और ताम्रपत्रादिकमें बिखरा हुमा पड़ा है। इससे जल्दी ही प्रारंभ होनेवाला है; क्योंकि छपने में भी काफी भारतीय ऐतिहासिक क्षेत्रमें कितना ही नया प्रकाश समय लगेगा? अतः जिन विद्वानोंने अभी तक भी पड़ेगा। और फिर एक व्यवस्थित जैन इतिहास सहज लेख न लिखे हों उनसे सानुरोध निवेदन है कि वे अब ही में तय्यार होसकेगा। इसके सिवाय, जो 'जैन- इस अंकके लिये अपने लेख शीघ्र ही लिखकर भेजनेलक्षणावली' वीरसेवामन्दिरमें दो ढाई वर्षसे तय्यार की कृपा करें, और इस तरह इस शासनसेवाके कार्यमें हो रही है उसका एक नमूना भी सर्वसाधारणके परिचय मेरा हाथ बटाकर मुझे अधिकाधिक सेवाके लिये प्रोत्सातथा विद्वानोंके परा पर्शके लिये साथमें देनेका विचार हित करें। लेख जहाँ तक भी हो सकें एक महीनेके है, जो प्रायः एक फार्मका होगा।
भीतर पाजाने चाहियें। जिससे उन्हें योग्य स्थान दिया इस तरह यह अंक बहुत ही उपयोगी तथा महत्व जासके । की सामग्रीसे सुसज्जित होगा। इस अंकका छपना
वीर-सेवा-मंदिरके प्रति मेरी श्रद्धाञ्जलि
इस महान् मंदिरके दर्शनोंकी मेरी अभिलाषा कई वर्षसे है । देखना है कि भाग्य और पुरुषार्थ दोनोंका जोर कब ठीक बैठता है और दर्शन, सेवाका सौभाग्य मुझे किस शुभ संवत्में प्राप्त होता है।
सेवामंदिर सेवकोंका तीर्थस्थान है, आश्रय है, उपाश्रय है, आश्रम है, उसका द्वार सच्चे सेवकोंके लिये रातदिन चौबीसों घण्टे खुला है; और वहाँ हज़ारों लाखों सेवकोंके लिये शान्तिस्थान, ण्यक्षेत्र धर्मक्षेत्र है। __ यह पवित्र स्थान उन वीर-सेवकों के लिये है जो वीर-भक्त और स्वयं वीर हों-रुढ़ि-भक्त उदरपोषक, धनसेवक-गृहपालकोंको वहाँ जाकर आराम न मिलेगा। शुरूमें यदि वहाँके वातावरणसे वे प्रभावित हो गए तो फिर निरन्तर ही खुख-शान्तिका दौर दौरा है ।
यह सेवकोंका मन्दिर है । सेवकोंको सेवकोंके दर्शन होते हैं । दर्शनके प्रतापसे अपनी सेवा करने वाला स्वार्थसेवी स्वयंसेवक उन्नतिपथपर आरूढ हो, परसेवक और जनसेवक बन जाता है..-आप तिरता है और औरोंको तारता है।
यहाँ बुड्ढे शिशु पंचाणुव्रतसाधनकी वर्णमाला, कषाय-शमनकी वाराखड़ी पढ़ते पढ़ते यथाख्यात चारित्रके पदकी प्राप्ति के उद्देश्यसे आते हैं। जिसको पाना हो, कमर कसके आवे; रास्ता हल्का करनेको गीत गाता चले--
"गुण-ग्रहणका भाव रहे नित, दृष्टिनदोषों पर जावे" अजिताश्रम, लखनऊ
अजितप्रसाद हाल भुवाली शैल, ता०२८-६-३६
(एडवोकेट)