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हरी साग-सब्जीका त्याग
(०-पाद सूरबमाबुजी पीस]
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[पनी रिपका शेष] म नमा निया की जासकती है; जैसे सुखानेसे, मागपर पकानेसे,
___ गरम करनेसे, खटाई वा नमक लगानेसे और चाकू माणुव्रती श्रावक अपने विषय कषायोंको कम कुरी भादि किसी यंत्रके द्वारा छिन्नभिन्न करने
करता हुआ, वैराग्यको बढ़ाता हुमा भौर से । यथासंसार मोहको घटाता हुमा, पहली, दूसरी, तीसरी सुचपत विवरणोति मिस्तिपदव्यं । और चौथी प्रतिमानों में उत्तीर्ण होकर जब पांचवी तेवर विश्वंतं स पासुचे भविषं ॥ प्रतिमामें प्रवेश करता है तो उस समय उसकी यदि पाँची प्रतिमावाला बनस्पतिको अपने मात्मा इतनी उन्नति कर जाती है कि वह साग- हायसे निर्जीव अर्थात् प्रासुक कर सकता है तो सब्जीके खानेका त्याग करदे । त्रसजीवकी हिंसाका उसको सुखाकर ही रखनेकी क्या जरूरत है। तब त्याग तो उसने दूसरी प्रतिमा धारण करते ही तो वह पाकूसे काटकर भी प्रामुक कर खा सकता अहिंसाणुव्रतमें कर दियाथा,परन्तु स्थावर जीवोंकी है, खटाई या नमक लगा लगाकर भी खा सकता हिंसाका त्याग बिल्कुल भी नहीं किया था, फिर है, गरम करके भी खा सकता है और पकाकर भी भोगोपभोग परिणामव्रतके ग्रहण करनेपर कन्दमूल खा सकता है। फिर एक पांचवी प्रतिमावाला ही मादि अनन्तकाय साधारण बनस्पतिके भक्षणका क्या सब ही इन रीतियोंमेंसे किसी न किसी रीतिके भी त्याग करदिया था, प्रत्येक बनस्पतिका नहीं द्वारा सब प्रकारके फल और साग सब्जीको किया था। अब इस पांचवी प्रतिमामें वह प्रत्येक निर्जीव वा प्रासुक करके खाते हैं, तब तो मानो बनस्पतिके भक्षणका भी त्याग कर देता है। यह सबही पांचवी प्रतिमाघारीसचित त्यागी है! परन्त त्याग उसका एकमात्र जीवहिंसासे बचनेके वास्ते ऐसा होता तो क्यों तो भोगोपभोग परिमाणवतमें ही होता है. इस कारण वह किसी बनस्पतिको काट अनन्तकाय जीवोंकी हिंसासे बचनेके वास्ते कंदकर सुखानेके द्वारा निर्जीव या प्रासुक भी नहीं मूबके मरणका त्याग कराया जाता और क्यों वह करता है ऐसा करने में तो वह साक्षात ही हिंसक पांची प्रतिमा कायम कर सब ही प्रकारकी सागहोता है।
। सम्बीके त्यागका विधान किया जावा ? इससे स्पष्ट बनस्पति अनेक प्रकारसे निर्जीव वा मासुक सिद्ध है कि न तो भोगोपभोग परिमाणवत माला