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वर्ष२, किरण १०]
महात्मा गान्धीके २७ प्रश्नोंका श्रीमद् रायचन्दजी द्वारा समाधान
है। ग्रन्थ श्रेष्ठ है । उस तरहका आशय अनादि विचार प्रगट करेंगे ? कालसे चला आ रहा है, परन्तु वे ही श्लोक अना- उत्तरः-निस्तीधर्मके विषयमें साधारण ही दिसे चले आते हों, यह संभव नहीं है; तथा जानता हूँ । भरतखंडके महात्माोंने जिस तरहके निष्क्रिय ईश्वरसे उसकी उत्पत्ति होना भी संभव धर्मकी शोध की है-विचार किया है, उसतरहके नहीं । वह क्रिया किसी सकिय अर्थात् देहधारीसे धर्मका किसी दूसरे देशके द्वारा विचार नहीं किया ही होने योग्य है, इसलिये जो सम्पूर्ण ज्ञानी है गया, यह तो थोड़ेसे अभ्याससे ही समझमें भावह ईश्वर है, और उसके द्वारा उपदेश किये हुए सकता है। उसमें (ख्रिस्तीधर्ममें ) जीवकी सदा शाख ईश्वरीय शास्त्र हैं, यह मानने में कोई बाधा परवशता कही गई है, और वह दशा मोक्षमें भी नहीं है।
इसी तरहकी मानी गई है जिसमें जीवके अनादि ११. प्रश्नः-पशु आदिके यज्ञ करनेसे थोड़ा- स्वरूपका तथा योग्य विवेचन नहीं है, जिसमें कमसा भी पुण्य होता है, क्या यह सच है। बंधकी व्यवस्था और उसकी निवृत्ति भी जैसी ___ उत्तरः-पशुके वधसे, होमसे अथवा उसे थो- चाहिए वैसी नहीं कही, उस धर्मका मेरे अभिप्रायडासा भी दुःख देनेसे पाप ही होता है तो फिर उसे के अनुसार सर्वोत्तम धर्म होना संभव नहीं है। यज्ञमें करो अथवा चाहे तो ईश्वरके धाममें बैठकर ख्रिस्ती धर्ममें जैसा मैंने ऊपर कहा, उस प्रकार जैसा करो परन्तु यज्ञमें जो दान आदि क्रियाएँ होती चाहिए वैसा समाधान देखने में नहीं पाता । इस हैं, वे कुछ पुण्यकी कारणभूत हैं। फिर भी हिंसा वाक्यको मैंने मतभेदके वश होकर नहीं लिया। मिश्रित होनेसे उनका भी अनुमोदन करना योग्य अधिक पूछने योग्य मालूम हो तो पूछना-सव नहीं है।
विशेष समाधान हो सकेगा। १२. प्रश्न:-जिस धर्मको श्राप उत्तम कहते १४. प्रश्न: के लोग ऐसा कहते हैं कि बाइबल हो, क्या उसका कोई प्रमाण दिया जा सकता है? ईश्वर-प्रेरित है । ईसा ईश्वरका अवतार है-बह
उत्तरः-प्रमाण तो कोई दिया न जाय, और उसका पुत्र है और था। इस प्रकार प्रमाणके बिना ही यदि उसकी उत्तमता- उत्तरः-यह बात वो श्रद्धासे ही मान्य हो का प्रतिपादन किया जाय तो फिर तो अर्थ-अनर्थ, सकती है, परन्तु यह प्रमाणसे सिद्ध नहीं होती। जो धर्म-अधर्म सभी को उत्तम ही कहा जाना चाहिए। बात गीत और वेदके ईश्वर-कर्तृत्वके विषय में परन्तुप्रमाण ते हो उत्तम-मनुत्तमकी पहिचान होती लिखी है, वही बात बाइबलके संबंधमें भी समझना है। जो धर्म संसारके क्षय करनेमें सबसे उत्तम हो चाहिये । जो जन्म मरणसे मुक्त हो, वह ईश्वर
और निजस्वभावमें स्थित करानेमें बलवान हो, अवतार ले, यह संभव नहीं है। क्योंकि राग-द्वेष वही धर्म उत्तम और वही धर्म बलवान है। आदि परिणाम ही जन्मके हेतु हैं। ये जिसके नहीं
१३. प्रश्न: क्या भाप खिस्तीधर्मके विषयमें हैं, ऐसा ईश्वर अवतार धारण करे, यह बात कुछ जानते हैं ? यदि जानते हैं तो क्या आप अपने विचारनेसे यथार्थ नहीं मालूम होती । 'वह ईश्वर