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अनेकान्त
[प्रथम श्रावस, वीर-निर्वाण सं०२४६५
स्वीकृत हो सकती है, परन्तु मुझे यह संभव नहीं आत्म-शान न हो यह कोई नियम नहीं है। लगतीं। क्योंकि सब पदार्थ सब जीव इस प्रकार २५. प्रश्न:--कृष्णवतार और रामावतारका समपरिणामको किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, " होना क्या यह सची बात है ? यदि हो तो वे कौन जिसमें इस प्रकारका संयोग बने ? और यदि थे ? ये साक्षात् ईश्वर थे या उसके अंश थे? क्या उम प्रकार के परिणामका प्रसंग आये भी तो फिर उन्हें माननेसे मोक्ष मिलती है ? .. विषमता नहीं हो सकती।
उत्तरः-(१) ये दोनों महाल्मा पुरुष थे, यह यदि अव्यक्त रूपसे जीवमें विषमता और तो मुझे भी निश्चय है। आत्मा होनेसे वे ईश्वर व्यक्त रूपसे समताके होनेको प्रलय स्वीकार करें थे। यदि उनके सर्व आवर्ण दूर हो गये हों तो तो भी देह आदि सम्बन्धके बिना विषमता किस उन्हें सर्वथा मोक्ष माननेमें विवाद नहीं । कोई
आधारमं रह सकती है ? यदि देह आदिका जीव ईश्वरका अंश है, ऐसा मुझे नहीं मालूम सम्बन्ध मानें तो सबको एकेन्द्रियपना माननेका होता। क्योंकि इसके विरोधी हजारों प्रमाण प्रमंग आये और वैसा माननेसे तो बिना कारण देखने में आते हैं। तथा जीवको ईश्वरका अंश ही दूसरी गतियोंका निषेध मानना चाहिये- माननेसे बंध मोक्ष सब व्यर्थ ही हो जाएँगे। अर्थात ऊँची गतिके जीवको यदि उस प्रकारके क्योंकि वह स्वयं तो कोई कर्ता-हर्ता सिद्ध हो परिणामका प्रसंग दूर होने आया हो तो उसके नहीं सकता ? इत्यादि विरोध आनेसे किसी जीवप्राप्त होनेका प्रसंग उपस्थित हो, इत्यादि बहुतसे को ईश्वरके अंशरूपसे स्वीकार करनेकी भी मेरी विचार उठते हैं। अतएव सर्व जीवोंकी अपेक्षा बुद्धि नहीं होती। तो फिर श्रीकृष्ण अथवा राम प्रलय होना संभव नहीं है।
जैसे महात्माओंके साथ तो उस संबंधके माननेकी २४. प्रश्न:-अनपढ़को भक्ति करनेसे मोक्ष बुद्धि कैसे हो सकती है ? वे दोनों अव्यक्त ईश्वर मिलती है, क्या यह सच है ?
थे, ऐसा मानने में बाधा नहीं है । फिर भी उन्हें उत्तरः-भक्ति झानका हेतु है । शान मोक्षका मंपूर्ण ऐश्वर्य प्रगट हुआ था या नहीं, यह बात हेतु है। जिसे अक्षरूझान न हो यदि उसे अनपढ़ विचार करने योग्य है। कहा हो तो उसे भक्ति प्राप्त होना असंभव है, (२) 'क्या उन्हें माननेसे मोक्ष मिलती है। इस यह कोई बात नहीं है। प्रत्येक जीव शान-स्वभावसे प्रश्नका उत्तर सहज है। जीवके सब राग, द्वेष युक्त है। भक्तिके बलसे ज्ञान निर्मल होता है। और अज्ञानका अभाव होना अर्थात् उनसे छूट मम्पूर्ण-ज्ञानकी आवृति हुए बिना सर्वथा मोक्ष हो जानेका नाम ही मोक्ष है । वह जिसके उपदेशसे जाय, ऐसा मुझे मालूम नहीं होता; और जहाँ हो सके, उसे मानकर और उसका परमार्थ स्वरूप मम्पूर्ण ज्ञान है वहाँ सर्व भापा-ज्ञान समा जाता विचार कर अपनी आत्मामें भी उसी तरहकी निष्ठा है, यह कहनेकी भी आवश्यकता नहीं । भाषा- रखकर उसी महात्माकी मात्माके भाकारसे (स्वज्ञान मोक्षका हेतु है ? तथा वह जिसे न हो उसे रूपसे) प्रतिष्ठान हो, तभी मोक्ष होनी संभव है।