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वर्ष २, किरण १.]
दिव्यम्वनि
वाणीसे झान उसी वक्त पैदा हो सकता है जब कि और जर्मनी जाननेवाले भादमी मौजूद और उसको सीखा जावे। बगैर सीखनेके कोई भी लेक्चरार साहेब अंग्रेजी पपानमें अपना लेक्चर अक्षरी वाणी ज्ञान पैदा करनेकी ताकत नहीं रखती दे रहे हों तो हरएक भादमी उसको अपनी अपनी है। इसलिये भी दिव्यध्वनिका निरक्षरी ही होना मादरी जबानमें साथ साथ तर्जुमा करता रहता है सिद्ध होता है।
और तर्जुमा करके ग्रहण करता है। इस ही किये इसके इलावा अगर यह मान लिया जावे कि निरक्षरी वाणीको हरएक इन्सान सुनकर अपनी निरक्षरी वाणीसे भी ज्ञान पैदा हो सकता है तो जबानमें तर्जुमा कर लेता है और इस तरह पर हमारा दूसरा सवाल भी हल हो जाता है कि किस बिला किसी दिसतके निरक्षरी वाणी कानमें जानेके तरह पर हरएक जीव दिव्यध्वनिको सुनकर अर्थ- बाद भक्षरी वाणीमें तब्दील (परिणत ) यानी ज्ञान अपनी अपनी भाषामें ग्रहण कर लेता है। तर्जुमा करली जाती है और धारण की जाती है। क्योंकि यह देखा जाता है कि इन्सानकी मादरी यह वाणी ऐसी हस्ती (व्यक्ति विशेष ) से पैदा जबान (मातृभाषा ) ऐसी होती है कि वह हमेशा होती है जिसने तमाम भाषाओंको त्याग दिया होता उसके सोचने और अर्थज्ञानको धारण करनेका है। चूंकि उनको शानको पूर्णता प्राप्त होती है और जरिया होती है। मसलन् जिन लोगोंकी मादरी पूर्णज्ञान शब्द तथा भाषासे प्रतीत होता है, इसजबान हिन्दी होती है तो वे चाहे किसी जबानमें लिये भी दिव्यध्वनि निरक्षरी ही हो सकती है। उपदेशको सुनें और चाहे जिस जबानमें किताबको अक्षरोंके द्वारा पूर्णशान नहीं पैदा हो सकता है। पढ़े मगर वे हमेशा उसके अर्थको अपनी मादरी सारा द्रव्यश्रुतमान भी पूर्णमान इसीलिये नहीं है। जबानमें ही ग्रहण करते हैं। हिन्दी बोलनेवाला आजका दिन इस पूर्णकानको प्रकाश करनेअगर संस्कृत पढ़ता है या सुनता है तो हमेशा वाली निरक्षरी वाणीके स्मरणका दिन है । जिनको पढ़ने और सुननेके साथ साथ उसका तर्जुमा पूर्णज्ञानकी प्राप्तिकी अभिलाषा है उनके लिये यह (अनुवाद) करके हिन्दीमें उसके मजमून पर विचार दिन प्रति पवित्र है। इस रोज के इस पापीका करता है । नवकार मन्त्र हमने लाखों पार पढ़ा खयाल करके सुखसागरमें मग्न हो सकते हैं। मैं होगा मगर प्राकृतका उचारणमात्र कोई शान पैदा भापको मुपारिकबाद देता हूँ कि मापने एक ऐसा नहीं करता जब तक उसका तर्जुमा न किया जावे। मौका पैदा किया कि मनुष्य इस दिनको याद करके इस मसले पर गौर करनेसे जाहिर होगा कि अगर अपना कल्याण कर सकते हैं। किसी जल्सेमें हिंदी, बंगाली, मराठी, फ्रांसीसी
सुमाषित 'शान्तिपूर्वक कुलमान करना और जीवहिंसा न करना; बस इन्होंमें तपस्याका समस्त सार है।'
-विलाल