________________
वर्ष २, किरण १०]
सुभाषित
१५७
बानी दूसरी उपासना सर्वथा मोक्षका हेतु नहीं है- अनित्य है, तो हि इस प्रसारभूत देहकी .. वह उसके साधनका ही हेतु होती है । वह भी रवाके लिये, जिसको उसमें प्रीति है, ऐसे निश्चयसे हो ही, ऐसा नहीं कहा जा सकता। सर्पको मारना तुम्हें कैसे योग्य हो सकता ___२६. प्रश्न:-ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर कौन है ? जिसे प्रात्म-हित की. चाहना है, "उले. तो थे?
फिर अपनी देहको छोड़ देना ही योग्य है। __उत्तरः-मृष्टिके हेतु रूप तीनों गुणों को मान- कदाचित यदि किसी को प्रात्म-हितकी इच्छा कर उनके आश्रयसे उनका यह रूप बताया हो, तो न हो तो उसे क्या करना चाहिये ? तो इसका यह बात टीक बैठ सकती है, तथा उस प्रकार के उत्तर यही दिया जा सकता है कि उसे नरक मानिदमरे कारणांसे उन ब्रह्मा आदिका स्वरूप समझमें में परिभ्रमण करना चाहिये अर्थात सर्पको मार प्राता है। परन्तु पुराणों में जिस प्रकारसे उनका देना चाहिये । परन्तु ऐसा उपदेश हम कैसे कर स्वरूप कहा है, वह स्वरूप उसी प्रकारसे है, ऐसा सकते हैं? यदि अनार्य-वृत्ति हो तो उसे मारनेका माननेमें मेरा विशेष झुकाव नहीं है । क्योंकि उनमें उपदेश किया जाय, परन्तु वह तो हमें और तुम्हें बहुतसे रूपफ उपदेशके लिये कहे हो, ऐसा भी स्वप्न में भी न हो, यही इच्छा करना योग्य है। मालूम होता है। फिर भी उसमें उनका उपदेशके, अबसंक्षेपमें इन उत्तरीको लिखकर पत्र समाप्त । रूपमें लाभ लेना, और ब्रह्मा आदिके स्वरूपका करता हूँ। षट्दर्शन समुषयके सममानेका विरोष सिद्धांत करने की जंजालमें न पड़ना, यही मुझे प्रयत्न करना। मेरे इन प्रश्नोत्तरोंके लिखनेके सं.. ठीक लगता है।
कोचसे तुम्हें इनका समझना विशेष प्राकुलताजनक २७. प्रश्न:-यदि मुझे मर्प काटने आये तो हो, ऐसा यदि जरा भी मालूम हो, तो भी विशेषता उस समय मुझे उसे काटने देना चाहिये या उसे से विचार करना, और यदि कुछ भी पत्रद्वारा पंचने मार डालना चाहिये ? यहाँ ऐसा मान लेते हैं कि योग्य मालम दे तो यदि पूछोगे सो प्रायः करके . उसे किसी दूसरी तरह हटानेकी मुझमें शक्तिः उसका उत्तर लिगा। विशेष समागम होने पर नहीं है?
समाधान होना अधिक योग्य लगता है। ..... ___उत्तर:-सर्पको तुम्हें काटने देना चाहिये, लिखित प्रात्मस्वरूपमें नित्य निष्ठाके हेतुभूत यह काम बतानेके पहले तो कुछ सोचना पड़ता विचारकी चिंता में रहनेवाले रायचन्नका प्रणाम । है, फिर भी यदि तुमने यह जान लिया हो कि देह .:. --
सुभाषित 'अग्नि उसीको जलाती है जो उसके पास जाता है मगर क्रोधाग्नि सारं कुटुम्बको जला डालनी है।' 'शरीरकी स्वच्छताका सम्बन्ध तो जलसे है, मगर मनकी पवित्रता सत्यभाषणसे ही मिट होती है।''
'दुनियाँ जिसे बुरा कहती है अगर तुम उममे बचे हुए होमो फिर न तु जटा रवाने की ज़रूटनन मिर मुंडाने की।
-तिकबाबर