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अनेकान्त
[प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं० २४६४
स्वरूप की प्राप्ति हो, ऐसा जो आर्य (उत्तम) माये अर्थ है ?
..... है उसे ही आर्यधर्म कहते हैं, और ऐसा ही योग्य उत्तरः-(१) वेदों की उत्पत्ति बहुत समय है। ...... ............... पहिले हुई है। ..
(२) सबकी उत्पत्ति वेदमेंसे होना सम्भव (२) पुस्तक रूपसे कोई भी शास्त्र अनादि नहीं; नहीं हो सकता । वेदमें जितना ज्ञान कहा गया है और उसमें कहे हुए अर्थके अनुसार तो सभी शास्त्र उससे हजारगुना श्राशययुक्तज्ञान श्रीतीर्थकर आदि अनादि हैं। क्योंकि उस उस प्रकारका अभिप्राय , महात्माभोंने कहा है, ऐसा मेरे अनुभवमें आता भिन्न भिन्न जीव भिन्न भिन्न रूपसे कहते आये हैं, है; और इससे मैं ऐसा मानता हूँ कि अल्प वस्तुमें- और ऐसा ही होना सम्भव है । क्रोध आदिभाव भी से सम्पूर्ण वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती । इस कारण अनादि हैं। हिंसा आदि धर्म भी अनादि हैं और वेदमेंसे सबकी उत्पत्ति मानना योग्य नहीं है। हाँ, अहिंसा आदि धर्म भी अनादि हैं। केवल जीववैष्णव आदि सम्प्रदायोंकी उत्पत्ति उसके श्राश्रय- को हितकारी किया है, इतना विचार करना ही से माननेमें कोई बाधा नहीं है । जैन-बौद्धके कार्यकारी है। अनादि तो दोनों हैं, फिर कभी अन्तिम महावीरादि महात्माओंके पूर्व वेद विद्यमान् किसीका कम मात्रामें बल होता है और कभी थे, ऐसा मालूम होता है । तथा वेद बहुत प्राचीन .किसीका विशेष मात्रामें बल होता। प्रन्थ हैं, ऐसा भी मालूम होता है। परन्तु जो कुछ १०. प्रश्नः-गीता किसने बनाई है ? वह प्राचीन हो, वह सम्पूर्ण हो अथका सत्य हो, ऐसा ईश्वरकृततो नहीं है ? यदि ईश्वर कृत हो तो उसनहीं कहा जा सकता; तथा जो पीछेसे उत्पन्न हो, का कोई प्रमाण है ? वह सब सम्पूर्ण और असत्य हो, ऐसा भी नहीं उत्तरः-ऊपर कहे हुए उत्तरोंसे इसका बहुत कहा जासकता । बाकी तो वेदके समान अभिप्राय कुछ समाधान हो सकता है। अर्थात् 'ईश्वर' का
और जैनके समान अभिप्राय अनादिसे चला श्रा- अर्थ ज्ञानी ( सम्पूर्ण ज्ञानी ) करनेसे तो वह ईश्वरहा है। सर्वभाव अनादि ही हैं, मात्र उनका रूपमा रकृत हो सकती है। परन्तु नित्य, निष्क्रिय आकाश न्तर हो जाता है, सर्वथा उत्पत्ति अथवा सर्वया की तरह ईश्वरके व्यापक स्वीकार करने पर उस. नाश नहीं होता। वेद, जैन, और सबके अभिप्राय प्रकार की पुस्तक प्रादिकी उत्पत्ति होना संभव अनादि हैं ऐसा माननेमें कोई बाधा नहीं है, फिर नहीं। क्योंकि वह तो साधारण कार्य है, जिसका उसमें किस बातका विवाद हो सकता है ? फिर कर्तृत्व प्रारंभपूर्वक ही होता है-अनादि नहीं भी इनमें विशेष बलवान सत्य अभिप्राय किसका होता। मानना योग्य है, इसका हम तुम सबको विचार गीता वेद व्यासजीकी रची हुई पुस्तक मानी करना चाहिए।
जाती है, और महात्मा श्रीकृष्णने अर्जुनको उस ६. प्रश्न:-वेद किसने बनाये ? क्या वे अ- प्रकारका बोध किया था, इसलिये मुख्यरूपसे भीनादि हैं ? यदि र अनादि हों तो अनादिका क्या कुष्ण ही उसके कर्ता कहे जाते हैं, यह बात संभव