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महात्मा गान्धीके २७ प्रश्नोंका श्रीमद् रायचन्दजी द्वारा समाधान
महात्मा गान्धी जब ( सन् १८६३ ईस्वी) दक्षिण अफ्रीकामें थे तब कुछ क्रिश्चियन सज्जनोंने । ईसाईमतमें दीक्षित हो जानेके लिये उन पर डोरे डालने शुरू किये । फलस्वरूप महात्माजीका चित्त । डाँवाडोल होगया और अपने धर्मके प्रति अनेक शंकाएँ उत्पन्न होगई। अतः उन्होंने अपनी वे शंकाएँ श्रीमद् रायचन्दजीको लिख भेजीं; क्योंकि रायचन्दजीकी विद्वत्ता और धर्म-निष्ठाके प्रति उनके । हृदयमें पहले ही प्रादरके भाव थे। रायचन्दजी द्वारा शंकाओंका समाधान होने पर महात्माजी। दूसरे धर्ममें जानेसे बचे,अपने धर्म पर श्रद्धा बढ़ी और उन्हें आत्मिक शान्ति प्राप्त हुई। रायचन्दजीके सद्प्रयत्नसे वह हिन्दुधर्ममें स्थिर रह सके और उन्हें बहुतसी बातें प्राप्त हुई, इसीलिये । महात्माजीने लिखा है कि “ मेरे जीवन पर मुख्यतासे रायचन्दजीकी छाप पड़ी है"। प्रश्नोत्तरका वह अंश पाठकोंके अवलोकनार्थ "श्रीमद्रायचन्द ग्रन्थ" से यहाँ दिया जा रहा है।
-सम्पादक
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१. प्रश्न:-आत्मा क्या है ? क्या वह कुछ भी संयोगसे उत्पन्न हो सकती हो, ऐसा मालूम नहीं करती है ? और उसे कर्म दुख देता है या नहीं ? होता । क्योंकि जड़के चाहे कितने भी संयोग क्यों उत्तरः- (१) जैसे
न करो तो भी उससे घट पट आदि जड़
चेतनकी उत्पत्ति नहीं वस्तुयें हैं, उसी तरह
हो सकती । जो धर्म आत्मा ज्ञानस्वरूप वस्तु
जिस पदार्थ में नहीं है। घट पट आदि
होता, उस प्रकारके अनित्य हैं-त्रिकालमें
बहुतसे पदार्थोके इकडे. एक ही स्वरूपसे स्थि
करनेसे भी उस रता पूर्वक रह सकने
जो धर्म नहीं है, वह वाले नहीं हैं । आत्मा
धर्म उत्पन्न नहीं हो एक स्वरूपसे त्रिकालमें
सकता, ऐसा सबको स्थिर रह सकने वाली
अनुभव हो सकता नित्य पदार्थ है । जिस
महात्मा गांधी
है । जो घट पट पदार्थकी उत्पत्ति किसी भी संयोगसे न हो मादि पदार्थ हैं, उनमें ज्ञानस्वरूप खिनमा नहीं सकती हो वह पदार्थ नित्य होता है। पात्मा किसी माता । उस प्रकारके पदार्योका यदि परिणामांतर
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