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तरुण-गीत
तरुण ! आज अपने जीवन में, जीवनका वह राग सुनादे !
सुप्त-शक्तिके कण कणमें उठ ! एक प्रज्वलित आग जगादे !! धधक क्रान्तिकी ज्वाला जाए महाप्रलयका करके स्वागत ! जिससे तन्द्राका घर्षण हो, जागे यह चेतनता अवनत !! प्राण विवशताके बन्धनका खण्ड खण्ड करदे वह उद्गम ! अंग अंगकी दृढ़ता तेरी निर्मापित करदे नवजीवन !!
स्वयं, सत्य-शिव-सुन्दर-सा हो, जग जनमें अनुराग जगादे !
तरुण ! आज अपने जीवन में जीवनका वह राग सुनादे !! तेरा विजयनाद सुन काँपे भधर सागर-नभ-तारक-दल ! रवि मण्डल भू-मण्डल काँपे, काँपे सुरगण-युत प्राखण्डल !! नव परिवर्तनका पुनीत यह गूंज उठे सब ओर घोर रव ! तेरी तनिक हुँकार श्रवण कर काँपे यह ब्रह्माण्ड चराचर !!
त अपनी ध्वनिसे मृतकोंके भी मृत-से-मृत प्राण जगादे !
तरुण ! आज अपने जीवन में जीवनका वह राग सुनादे !! तेरी अविचल गतिका यह क्रम पद-मदित करदे पामरता ! जड़ताकी कड़ियाँ कट जाएँ, पाजाए यह ध्येय अमरता !! हृद्तलकी तड़फनमें नूतन जागृत हो वह विकट महानल ! जिसमें भस्मसात् होजाए अत्याचार पाप कायर दल !!
तेरा खोलित रक्त विश्व कण कणसे अशुभ विराग भगादे !
तरुण ! आज अपने जीवन में जीवनका वह राग सुनाद !! अपने सुखको होम निरन्तर, त भपर समता विखरादे ! जिसमें लय अभिमान अधम हो, ऐसी शुचि ममता बरसादे !! सत्य-प्रेमकी आभासे हो अन्तर्धान पापकी छाया । रूढ़ि, मोह, अज्ञान, पुरातन भ्रम, सब हों सुपनेकी माया !!
त प्रबुद्ध हो, सावधान हो, स्वयं जाग कर जगत जगादे !
तरुण आज अपने जीवन में जीवनका वह राग सुनादे !! [श्री राजेन्द्रकुमार जैन कुमरेश] -.........
सुधार लेवें-पृ० १०५ पर मुद्रित 'जयवीर' कविताके दूसरे बन्दकी ७वीं पंक्तिमें 'पर' की जगह 'पर, स्मों और वें छन्दकी रवीं पंक्ति में 'शुभ माशाएँ प्रशस्त' की जगह 'शुभाशाएँ प्रशस्त' बनाया जाये।