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हृदयकी वह
मूल्य-निधियाँ
कि जिनसे है जीवन, जीवन ! उगाकर भोलेपनसे उन्हेंदरिद्री हो बैठा यह मन !!
किया करते उद्वेलित इसेक्षणिक, अस्थिर सुख-दुख तूफ़ान न करनेको समर्थ होतावास्तविकताकी दृढ़ - पहिचान !
मनोवेदना
भगवत्स्वरूप जैन 'भगवत्'
पहुँच जाता सक्षेम सानन्द कभी उत्थान - हिमालय पर ! दुलककर पतन - तलहटीमेंबना लेता यह अपना घर !!
अपनी दशा
मैं हँसता हूँ तो दुनिया - मुझको पागल बतलाती ! जब रोता हूँ तो उस परकुछ दया नहीं दिखलाती !! मेरे रोने हँसनेमें
अनेकान्त
फिर विशेषता क्या है ! हँसना भी वैसा ही हैजैसा कि दुखद रोना है !!
इस दुनियाकी क्या कहतेदुनिया है रंग-रंगीली ! दुखियोंको रौरव है तोसुखियोंको तान रसीली !! मैं सुख-दुख के सागरमेंअपनापन भूल रहा हूँ !
[ फाल्गुन, वीर निर्वाण, सं० २४६५
विविध, भ्रामिक- प्रलोभनों परनिरन्तर यह रहता फुला ! झूलता मंत्र-मुग्धकी भांतिनिराशा - आशाका झूला !!
ग्रन्थि ऐसी दृढ़ता के साथदुखद घटनाओंसे उलझी ! चाहती नहीं सुलझना औरन जो है अबतक भी सुलझी !!
माया-मरीचिका लेकर
हर्षित हो फूल रहा हूँ !!
पर हृदय- देशमें कैसा
चल रहा विकट आन्दोलन !
कोमल तर अभिलाषाएँपा रहीं नित्य-प्रति बन्धन !!
मेरी सूखी आंखों में
नित सजल - गानकी लहरी !
क्यों अनजाने ही दुखप्रद - मदिरा-सी चढ़ती गहरी !!
भगवत्स्वरूप जैन 'भगवत्'
मैं नहीं चाहता मेराकोई रहस्य प्रगति हो ! सुख हो या दुख कुछ भी होबस, मनमें ही सीमित हो !!