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वर्ष.२, किरण..]
माम्य और पुरुषार्थ
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होम ही जाय, ईमें संशय नहीं है, बहुर बायुकर्मकी परमागमते निभय करना, जो वायु कर्मका परमाणु तो नाई प्रत्यकर्म भी जो वानिमित्त परिपूर्ण मिल साठ वर्ष पर्यंत समय समय पावाजोग्य निषेकनिमें जाय तो उदय हो ही जाय, नीम-भक्षण करेगा ताके बांटाने प्राप्त भया होय पर बीचमें बीस बरसकी अवस्था तत्काल असोता वेदनीय उदय भावे है, मिभी इत्यादिक ही में जो विष शस्त्रादिकका निमित्त मिल जाय तो ए वस्तु-भक्षण करे ताके सातावेदनीय उदय भावे ही चालीस बरस पर्यंत जो कर्मका निषेक समय समय है तथा वस्त्रादिक आड़े आजाय चक्षुद्वारे मतिशान निर्जरता सो अन्तर्महूर्तमें उदीर्णा नै मास होय का रुक गाय, कर्ण में डाटा देवें तो कर्ण द्वारे मतिशन रुक नाश प्राप्त होय, सो अकाल मरण है।" जाय, ऐसे ही अन्य इन्द्रियनके द्वारे शान रुके हो हैनथा भावार्थ इस कथनका यह है कि जिस प्रकार किसी श्रादिक द्रव्यते श्रुतशान रुक जाय है, भैसकी दही अंगीठीमें जलते हुए कोयले भर दिये जावे तो साधारण लस्सन आदिक द्रव्यके भक्षण ते निद्राकी तीव्रता होय ही रीतिसे मन्द-मन्द तौर पर जलते हुए वे कोयले एक है, कुदेव, कुधर्म, कुशास्त्रकी उपासना से मिथ्यात्वकर्मका घंटे तक जलते रहेंगे, कोयलोंके थोडे थोडे कण हरदम उदय श्रावे ही है, कषायण के कारण मिले कषायणकी जल जल कर राख होते रहेंगे और एक घंटे में सब ही उदीर्णा होवे ही है, पुरुषका शरीरक तथा स्त्रीका शरीर जलकर खतम हो जायेंगे, परन्तु अगर तेज हवा चलने कं स्पर्शनादिक कर वेदकी उदीर्णत कामकी वेदना लगे या कोई जोर जोरसे पंखा झलने लगे, पंक मारने प्रज्वलित होय ही है, परति कर्मकं इष्टवियोग, शोककर्म- लगे या उन कोयलोपर मिट्टीका तेल गल दे तो वे कं सुपुत्रादिकका मरण, इत्यादिक कर्मकी उदय उदी- कोयले एकदम भड़क उठेंगे और दस पांच मिनटमें ही
दिक करे ही है । तातें ऐसा तात्पर्य जानना, जलकर राख हो जायेंगे । उसही प्रकार हर एक कर्मका इस जीवके अनादिका कर्म-संतान चला आवे है, भी बंधा हुआ समय होता है, उस बँधे हुए समय श्रर समय समय नवीन नवीन बन्ध होय है, तक वह कर्म साधारण रीतिसे मन्द मन्द गतिसे अपना समय समय पुरातन कर्म रस देय देय निजरे हैं, सो असर दिखाता हुभा हरदम कण कण नाथ होता जैसा वाह्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, मिल जाय तैसा रहता है। समय पूरा होने तक वह सब खतम हो जाता उदयमें भाजाय, तथा उदीर्णा होय उत्कटरस देवे । पर है, इस ही को कर्मोंका उदय होना, मरजाना या निर्जरा जो कोऊ या को, कर्म करेगा सौ सेयगा, तो कर्म तो होते रहना कहते हैं, परन्तु अगर किसी जोरदार निमित्त या जीवके सर्व ही पाप पुण्य सत्तामें मौजूद विर्षे, कारणसे कर्मका वह हिस्सा भी जो देरमें उदय होता जैसा जैसा वाम निमित्त प्रबल मिलेगा, तैसा तैसा जल्दी उदयमें पाजाय तो उसे उदीर्णा कहते है। उदय आवेगा, और जो बाम निमित्त कर्मके उदयको दृष्टांत रूपसे किसीकी आयु साठ बरसकी है लेकिन कारण नाही, तो दीवा लेना, शिक्षा देना तपश्चरण करना बीस बरसकी ही अवस्थामें उसको सापने काट खावा सत्संगति करना, वाणिज्य म्यवहार करना, राजसेवादि या किसीने तलबारसे सिर काट दिया, जिससे वह मर करना, खेती करना, औषधि सेवन करना, इत्यादिक गया वो यह समझना चाहिये कि उसकी बाकी बची सर्व व्यवहारका जोर हो जाय, ताते ऐसी भावनाई हुई चालीस बरसकी भायुकी उदीर्ण हो गई, ऐसे ही