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ALANIMAR
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-चीर-सेवामन्दिर (ममन्तभद्राश्रम) मरमावा, जि.महारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट मर्कम, पो० ब० नं. ४८. न्य देहली ज्येष्ठ शुक्ल, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १६६६
वर्ष २
किरण
समन्तभन्न-बाणा
प्रज्ञाधीशप्रपज्योज्वलगुणनिकरोभतसत्कीर्तिसम्पद्विद्यानन्दोदयायाऽनवरतमखिलक्लेशनिर्णाशनाय । स्ताद्गौः सामन्तभद्री दिनकररुचिजित्सप्तभंगीविधीद्धा भावाद्येकान्तचेतस्तिमिरनिरसनी वोऽकलंकप्रकाशा ।।
-प्रष्टसहस्या, श्रीविद्यानन्दाचार्यः श्रीसमन्तभद्रकी वाणी-वाग्देवी-बड़े बड़े बुद्धिमानों (प्रज्ञाधीशों) के द्वारा प्रपूजित है, उज्ज्वल गुणोंके समूहसे उत्पन्न हुई सत्कीर्तिरूपी सम्पत्तिसे यक्त है, अपने तेजसे सूर्यके तेजको जीतने वाली सप्तभंगी विधिके द्वारा प्रदीप्त है, निर्मल प्रकाशको लिये हुए है और भाव-भाव आदिके एकान्त पक्षरूपी हृदयान्धकारको दूर करनेवाली है। वह वाणी तुम्हारी विद्या (केवलज्ञान) और आनन्द (अनन्त सुख) के उदयके लिये निरन्तर कारणीभत होवे और उसके प्रमादसे नुम्हारे संपूर्ण दुःख-क्लेश नाशको प्राप्त हो जावें ।
अद्वैताद्याग्रहोग्रग्रह-गहन विपन्निग्रहे ऽलंध्यवीर्याः स्यात्काराऽमोघमंत्रप्रणयन विधयः शमदध्यानधाराः |