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श्रावण कृष्ण प्रतिपदाकी स्मरणीय तिथि
वीर-शासन-जयन्ती
और
[०५० परमानन्दजी जैन शाबी]] श्रावण कृष्णा प्रतिपदा भारतवर्षकी एक अति इतना ही नहीं, युगका प्रारम्भ और सुषम सुषमादि
'प्राचीन ऐतिहासिक तिथि है । इसी तिथिसे के विभागरूप कालचक्रका अथवा उत्सर्पिणी अवसर्पिदशी भारतवर्ष में बहुत पहले नववर्षका प्रारम्भ हुआ करता कालोका प्रारम्भ भी इसी तिथिसे हुआ करता है, ऐसा था, नये वर्ष की खुशियाँ मनाई जाती थीं और वर्षभरके पुरातन शास्त्रोंमें उल्लेख है। साथ ही यह भी उल्लेख है लिये शुभ काम नाएँ की जाती थी । तिलोयपएणती कि युगकी समाप्ति श्रापाढकी पौर्णमासीको होती है, (त्रिलोकप्रशप्ति ) और धवल जैसे प्राचीन ग्रन्थोंमें पौर्णमासीकी रात्रिके अनन्तर ही प्रातः भावण कृष्णा“वामस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए" प्रतिपदाको अभिजित नक्षत्र, बालवकरण और रुद्र मुह. नथा “वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे में युगका प्रारम्भ हुश्रा करता है । ये नक्षत्र, करण बहुले, पांडिवद पुन्वदिवस" जैसे वाक्योंके द्वारा इस और मुहूर्त ही नक्षत्री, करगों तथा मुहूर्तोंके प्रथम स्थातिथिको वर्ष के प्रथम मास और प्रथम पक्षका पहला नीय होते हैं-अर्थात् इन्हींसे नक्षत्रादिकोंकी गणना दिन मूचित किया है । देशमें सावनी-अाषाढीके विभा- प्रारम्भ होती हैं । इन सबके द्योतक शास्त्रोंके कुछ प्रमाण गरूप जो फ़सली साल प्रचलित है वह भी उसी प्राचीन नीचे उद्धृत किये जाते हैं:प्रथाका सूचक जान पड़ता है, जिसकी संख्या अाजकल सावणबहुले पाडिव रुद्द मुहत्ते सुहोदये रविणो । ग़लत प्रचलित हो रही है ।
अभिजिस्स पढमजोए जुगस्स भादी इमस्स मुढं कहीं कहीं विक्रम संवत्का प्रारम्भ भी श्रावण
-तिलोषपरणी, १,७० कृष्ण से माना जाता है; जैसा कि विश्वेश्वरनाथ
सावणबहुलपडिवदे रुद्दमुहत्तं सुहोदए रविणो । रेउके 'राजा भोज' नामक इतिहास ग्रन्थके निम्न प्रव- अभिजिस्स पढमजोए तत्थ जुगादी मुरोयन्यो । तरणसे प्रकट है
-धवलसिद्धान्त, प्रथमखस्ट "राजपूतानेके उदयपुर राज्यमें विक्रम संवत्का और मारवादमें पहलेसे वर्षका भारम्भ श्रावण कृया प्रारम्भ श्रावण कृप्य । से माना जाता है। इसी प्रकार प्रतिपदासे ही होता था । विक्रम संवतको अपनाते हुए मारवारके सेठ-साहूकार भी इसका प्रारम्म उसी दिनसे वहाँके निवासियोंने अपनी बारम्मकी तिथिको नहीं मानते हैं।" (पृ०१७)
घोगा और उसके अनुरूप विक्रम संवत्को परिवर्तित इससे ऐसा पतित होता है कि उदयपुर राज्य कर दिया।