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वर्ष.२, किरण]
वीरप्रभुके धर्म में जाति भेदको स्थान नहीं है
वास्तवमें मनुष्य मात्रकी एक ही जाति है, ब्राह्मण, समान है, फिर चार भेद कैसे हो सकते हैं ? क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, ये चार भेद अाचारमात्रसे ही क्रिया विशेषसे, व्यवहार मात्रसे अथवा दया, रक्षा, होते हैं ?
कृषि और शिल्पके भेदसे ही उक्त चार वर्ण क्रमशः 'नीच जाति वाले भी शील-धारण करनेसे स्वर्ग कहे गये हैं । इसके विपरीत चार वर्णीका कोई जुदा गये ! शील संयमका नाश करनेसे ऊँचे कुल वाले भी अस्तित्व नहीं हैं। नरक गये।'
__इस कथनके प्रतिपादक मूलवाक्य निम्न प्रकार हैं__'गुणोंसे ही जाती बनती हैं और गुणोंका नाश 'न ग्रामणामन्द्रमरीचि राधा न पत्रिपाःशिक पुप्पगोराः होजाने से ही नाश होजाती है । इस कारण बुद्धिमानीको नचेहरया हरिताज तुल्याःशुदा न चाकारसमानवाःn गुणोंका ही श्रादर करना चाहिये।'
पादप्रचारैस्तनुवर्णकेशैः सुखेन दुःखेन च शोणितेन ।
स्वम्मासमेदोऽस्थिरसैःसमानाचतुःप्रभेदारक भवन्ति। जातिका गर्व कभी नहीं करना चाहिय; क्योंकि वह ।
क्रियाविशेषाम्यवहारमात्राायाभिरक्षाकृषिशिल्पभेदात् ।.. नीचताको पैदा करने वाला है। मत्परुपोंको नो उच्चता शिष्टाश्चवर्णाश्चतुरोवदन्ति नान्यथा वर्णचतुष्टयं स्यात्।। का देनेवाला शील संयम ही धारण करना चाहिये ।'
-पगं २५यों इस सब कथनके मूल श्लोक इस प्रकार हैं
(६) श्री प्रभाचन्द्राचार्यने अपने प्रमय कमल प्राचारमात्रभेदेन जातीनां भेदकल्पनं ।।
मार्तण्ड में जाति भेदका बहुत विस्तारमें ग्वाइन किया न जातिाह्मणायास्ति नियता कापि तात्विकी ॥२४॥ है, जिमका कुछ मारांश इस प्रकार हैबाह्मणक्षत्रियादीनां चतुर्णामपि तस्वतः।
__'जैमा किसी व्यक्ति को देखने मे 'यह मनुष्य है'. एकैव मानपी जातिराचारेण विभज्यते ॥ २५ ॥
ऐमा जान लिया जाता है, वैसे 'यद ब्राभण है' एमा शीलवन्तो गताः स्वर्ग नीचजातिभवा अपि । कुलीना नरकं प्राप्ताः शीलसंयमनाशिनः ॥३१॥ नहीं जाना जाता।' गुणैः सम्पद्यते जातिगुणध्वंसविपद्यते ।
___'अनादिकालम मातृकुन और पितृकुल शुद्र है, यतस्ततोबुधैः कार्यों गुणेष्वेवादरः परः ॥३२॥ इमका पता लगाना हमारी-यापकी शक्ति के बाहर है। जातिमात्रमदः कार्यों न नीचत्वप्रवेशकः ।
प्रायः स्त्रियाँ कामातुर होकर व्यभिचार के चक्र में पद उच्चत्वदायकः सद्भिः कार्यः शीलसमादरः ॥३३॥
जाती हैं। तब जन्ममे जातिका निश्चय ही सकता (५) जटामिहनन्दी प्राचार्य ने 'वरांगचरितमें जानि- है ? व्यभिचारी माता पिताकी मन्नान श्री. निटांप भेदका जो, खंडन किया है। वह इस प्रकार है
माता पिताकी मन्नान में कुछ भी अन्तर दिमाई नहीं वाद्य लोग चन्द्रमाकी किरण के समान शुभ्र देता । जिस प्रकार घोडे श्रीर गधे के सम्बन्धन पदा नहीं हैं, क्षत्रिय किंशुक फल के समान गोर नहीं है, होनेवाली गधीकी मन्नान भिन्न भिन्न नरहकी होती वैष्य हरताल के समान पीतया वाले नहीं हैं और न है, उस प्रकार वादागग और शुद्र के सम्बन्धमे पैदा होने शद्र अंगारके समान रंगवाले हैं।'
वाली वावगीकी सन्नानग अन्तर नहीं होता है। _ 'चलनेके बैंगसे, शरीरके वर्णमे पं.शॉस, मुग्वस, 'जैसे नाना प्रकारकी गायोंमें एक प्रकारकी ममानना दुखसे, रुधिरसे, लचा-मांमभेद हड्डी और रमॉम मब होने, गाय जातिका प्रत्यक्ष वेध होता है, उस प्रकार