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वीर-शासन-जयन्ती
अर्थात् श्रावण कृष्ण-प्रतिपदाकी पुण्य-तिथि यह तिथि-इतिहासमें अपना स्वास महत्व तथा 'धवल'आदि सिद्धान्त प्रथोंपरसे-चला है। रखती है और एक ऐसे 'सर्वोदय' तीर्थकी जन्म- सावनी आषाढ़ीके विभागरूप फसली साल भी तिथि है, जिसका लक्ष्य 'सर्वप्राणिहित' है। उसी प्राचीन प्रथाका सूचक जान पड़ती है, जिस
इस दिन-श्री सन्मति-वद्धमान-महावीर आदि की संख्या आज-कल ग़लत प्रचलित होरही है। नामोंसे नामाङ्कित वीर भगवानका तीर्थ प्रवर्तित इस तरह यह तिथि-जिस दिन वीर-शासनकी हुआ, उनका शासन शुरू हुआ, उनकी दिव्यध्वनि जयन्ती (ध्वजा) लोकशिखर पर फहराई, संसारवाणी पहले-पहल खिरी, जिसके द्वारा सब जीवों के हित तथा उत्थानके साथ अपना सीधा एवं को उनके हितका सन्देश सुनाया गया। खास सम्बन्ध रखती है और इसलिये सभीके
इसी दिन-पीड़ित, पतित और मार्गच्युत द्वारा उत्सवके साथ मनाये जानेके योग्य है । जनताको यह आश्वासन मिला कि उसका उद्धार इसीलिये इसकी यादगारमें कई वर्षसे वीर-सेवाहो सकता है।
मंदिरमें 'वीरशासनजयन्ती' के मनानेका आयोयह पुण्य-दिवस-उन क्रूर बलिदानोंके साति- जन किया जाता है। शय रोकका दिवस है, जिनके द्वारा जीवित प्राणी इस वर्ष-यह पावन तिथि ता०२ जुलाई सन निर्दयतापूर्वक कुरीके घाट उतारे जाते थे अथवा १९३९ रविवारके दिन अवतरित हुई है। इस दिन होमके बहाने जलती हुई श्रागमें फेंक दिये जाते थे। पिछले वर्षोंसे भी अधिक उत्साहके साथ वीर
इसी दिन-लोगोंको उनके अत्याचारोंकी सेवा-मन्दिरमें वीरशासन-जयन्ती मनाई जायगी, यथार्थ परिभाषा समझाई गई और हिंसा-अहिंसा जिसमें “वीरशासन" पर विद्वानोंके प्रभावशाली तथा धर्म-अधर्मका तत्व पूर्णरूपसे बतलाया गया। व्याख्यान होंगे और आये हुए महत्वके लेख पढ़े
इसी दिनसे-स्त्री-जाति तथा शूद्रोंपर होने जायेंगे अबकी बार भी उत्सव दो दिनका-२-३ बाले तत्कालीन अत्याचारोंमें भारी रुकावट पैदा जुलाईका-रहेगा। हुई और वे सभी जन यथेष्ट रूपसे विद्या पढ़ने अतः-सर्व साधारणसे निवेदन है कि वे इस तथा धर्म-साधन करने आदिके अधिकारी ठहराये शुभ अवसर पर वीर-सेवा-मन्दिरमें पधार कर गये।
अपने उस महान उपकारीके उपकार-स्मरण एवं इसी तिथिसे-भारतवर्ष में पहले वर्षका प्रारम्भ शासन-विवेचनमें भाग लेते हुए वह दिन सफल हुआ करता था, जिसका पता हालमें उपलब्ध हुए करें और वीरप्रभुकी शिक्षा तथा सन्देशको कुछ अति प्राचीन ग्रन्थ-लेखोंसे-'तिलोयपएणत्ति जीवन में उतारनेका दृढ़ संकल्प करें। जो भाई