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अनेकान्त
[असाद, वीर-निर्वाण सं०२४६५
उषाने सजाया थाल रवि हुआ लाल-लालमुँह खुल गए हर्ष प्रेरित सुमनके । गाने लगे गीत व्योम-गामी मद मत्त हुएजान कर चिन्ह मानों प्रभु-भागमनके !! ताल देने लगे 'पत्र' हर्षसे विभोर हुएसाथी बनगए शक्तिशाली समीरणके ! सुखद समय बना शान्तिसे प्रपर्ण तबजन्म ले रहे थे जब भूषण-भुवनके !! .
(१०) विश्वकी विभूति वीर-अभुने अहिंसा-मंत्रफंक कर थाम लिया विश्व हल-चलसे !! जागरूक बनके ज़मानेको जगाया औरजगको बचाया कष्टकारी पाप-मलसे !! मानवीयता का बतला दिया रहस्य सारादिये सद्-उपदेश प्रेमसे, कुशलसे ! काम-क्रोध-मोहसे अजीत बन गए जबजीत लिया सारा ही जहान आत्म-बलसे !!
नर्क-धाममें भी कुछ देरको विषाद मिटानर-लोक, सुर-लोक फिर क्या कथनमें ? मंगल-प्रभातके प्रमोदमें निमग्न थी किअनुभव होने लगी शल्य एक मनमें !!दीखे जब एक-साथ सूर्य दो बसुन्धराकोपड़ गई तभी वह भारी उलझनमें! । त्रिसलाके अंकमें प्रकाश-पुञ्ज सूरज हैयाकि सूर्य-विम्ब दिश प्राचीके गगनमें ?
(६) दोनों हैं प्रकाश-युञ्ज दोनों हैं परोपकारीदोनों भरते हैं रस प्राणोंमें उमंगका ! दोनोंका है ध्येय एक साधन भी एक ही हैदोनोंका प्रचार-कार्य एक ही प्रसंगका !! अन्तर है इतना कि एक तो निरन्तर' हैएक, एक-दिन ही में होता तीन ढंग का ! एक हरता है सिर्फ अन्धकार बाहरकाएक हर देता है अंधेरा-अन्तरंग का!!
अत्याचारियोंके अत्याचार सब धूल हुएहिंसा दुराचारिणीकी संघ-शक्ति विघटी ! चन्द्रिका-सी शांन्ति जागरित हुई जगतीमें-- हाहाकार-ज्वाला भीरुताके साथ सिमटी !! हर्षसे विभोर उठा--'पुण्य' लिये पौरुषको-- 'पाप'की समस्त-शक्ति देखते उसे हटी ! एक नव जीवन-सा विश्वमें दिखाने लगाजैसे ही दयाकी नव्य, भव्य-क्रान्ति प्रकटी !!
(१२) फैल उठी विश्वमें भ्रातृत्व प्रखर-ज्योतिपात्र बन गया 'द्रोह' लोक-उपहासका ! जीवनका ध्येय, ज्ञान-तत्वका पढ़ाया पाठउपदेश दिया कर्मवीरोंको प्रयासका !!
आत्मकी समानताका लोकोत्तर-ज्ञान द्वारा-- मार्ग बतलाया पूर्ण आत्मके विकाशका ! कहना यथेष्ट यही, सत्यवीर-शासन' ने-- पृष्ठ ही पलट दिया विश्व इतिहास का !!